बरसा ऋतु आ गए रे आली
श्यामसुंदर घर नहीं आए
आई आषाढ़ घटा घन घेरे
सावन बूंद पड़ो
भादो के बूंद सहा ना जाए
आसिन आस लगे रे आलो
श्यामसुंदर घर नहीं आए
बरसा ऋतु आ गए रे आली
कातिक केता घर नहीं आए
अगहन धान कटे
पूष के जाड़ा सहा ना जाए
माघ में पाला पड़े
श्यामसुंदर घर नहीं आए
बरसा ऋतु आ गए रे आली
फागुन फाग पिया संग खेलूं
चैत खेलूं बल जोड़ी से
बैशाख धूप सहा ना जाए
जेठ में धाम चले
श्यामसुंदर घर नहीं आए
बरसा ऋतु आ गए रे आली
सौजन्य- श्री लखन चौधरी
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