आपसे निवेदन

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Friday, October 29, 2010

चुनाव पूर्व मुखियाजी का संदेश

एक नवंबर को अमरपुर विधानसभा और बांका लोकसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे। शांतिपूर्ण चुनाव के संचालन के लिए दूसरे मतदान केंद्रों की तरह छतहार पंचायत में भी व्यापक इंतजाम किए गए हैं। इस मौके पर मुखिया श्री मनोज कुमार मिश्र पंचायत के लोगों से शांतिपूर्ण मतदान की अपील की है। छतहार ब्लॉग को भेजे वीडियो संदेश में श्री मिश्र ने कहा है कि मतदाताओं को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे पंचायत की छवि को बट्टा लगे। पेश है मुखिया जी का वीडियो संदेश।

Tuesday, October 26, 2010

अमरपुर में दिलचस्प मुकाबला

गुड़ उत्पादन में कलकत्ता की मंडी में धाक रखने वाले अमरपुर क्षेत्र में इस बार का चुनावी मुकाबला का काफी दिलचस्प है। चुनावी मैदान की तस्वीर साफ होने लगी है। सभी 14 प्रत्याशी अपनी जीत के लिए जी तोड़ कोशिश में जुट गये हैं। लगातार चार बार से जीतते आ रहे राजद के सुरेंद्र प्रसाद सिंह कुशवाहा को इस बार सीट बचाने की चुनौती मिल गयी है। जदयू ने उसी के जाति से आने वाले बेलहर के निवर्तमान विधायक जनार्दन मांझी को प्रत्याशी बनाकर राजद के वोट बैंक में सेंध लगा दी है।
हालांकि इस सीट की सीधी लड़ाई को त्रिकोण बनाने के लिए कांग्रेस प्रत्याशी एड़ी-चोटी एक किये हुए हैं। दरअसल राजद प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह अब तक राजद वोट बैंक व अपनी जाति की मजबूत गोलबंदी से चुनाव जीतते रहे हैं। राजद की जदयू पर जीत का फासला भी कम रहा है। इस चुनाव में जदयू ने उसी जाति के बेलहर विधायक जर्नादन मांझी को अमरपुर से प्रत्याशी बनाकर नया दांव चल दिया है।
वर्तमान विधायक के पास चार चुनाव जीतने और क्षेत्र से पुराने जुड़ाव का फायदा है तो जदयू प्रत्याशी क्षेत्र के लिए नये हैं। हालांकि राजद विधायक के लिए इस बार पिछले चुनाव की तुलना में चुनौती बढ़ी है। इसका कारण उनके आधार वोट में जदयू की सेंधमारी है। जिससे मुकाबला काफी टफ हो गया है।
नये परिसमन में फुल्लीडुमर प्रखंड के चार पंचायत घटने तथा शंभूगंज के छह पंचायत बढ़ने से राजद वोट बैंक को ही आंशिक नुकसान हुआ है। इस चुनाव में भी जनता विकास के मुद्दे के साथ विधायक जी के पंद्रह साल के कार्यकाल का हिसाब ले रही है। पंद्रह साल लगातार विधायकी का एंटी इंकबैंसी भी उनके पीछे पड़ी है। जनता का मूड इस पर कितना नरम रहेगा यह जीत हार का परिणाम देगा।
इससे इतर कांग्रेस ने सवर्ण प्रत्याशी राकेश कुमार सिंह को मैदान में उतार कर जदयू की परेशानी थोड़ी बड़ा रखी है। जदयू के लिए उन्हीं की पार्टी के एनसीपी उम्मीदवार बने मनोज आजाद, निर्दलीय अनिल कुमार सिंह सहित कई दलीय टिकट से वंचित नेता भी जीत में रोड़ा अटकाने को प्रयासरत हैं तो राजद के लिए भी लोजपा नेत्री बेबी यादव, जवाहर लाल पासवान, सपा के पंकज कुमार आदि प्रत्याशी बन बाधा बने हुए हैं। इसके अलावा सजपा प्रत्याशी केदार प्रसाद सिंह, लोससपा के विनोद कुमार, इंजपा के अमित कुमार झा, सुरेश पासवान, सैयद आलमदार हुसैन, जेडीएस के रमेश कुमार चौधरी भी मैदान में उतर कर विधायक बनने को बेताब दिख रहे हैं। प्रत्याशियों के समर्थन में बड़े नेताओं की चुनावी सभा शुरू होने के बाद मुकाबले की तस्वीर और साफ दिखने लगेगी।
(ये खबर दैनिक जागरण से ली गई है। हम इसका कोई व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं कर रहे। अगर दैनिक जागरण को कोई आपत्ति हो तो हम ब्लॉग से खबर हटाने को तैयार हैं)

अनूठा है बांका

छतहार इन दिनों चुनावी बुखार में तप रहा है। मतदाता एक नवंबर को एक साथ बांका लोकसभा उपचुनाव और अमरपुर विधानसभा चुनाव में वोट डालेंगे। हमारी कोशिश है कि चुनाव को लेकर राष्ट्रीय मीडिया में जो कुछ छप रहा है,उससे आपको अवगत कराएं। पेश है दैनिक जागरण में छपा एक लेख कि क्यों बांका है अनूठा लोकसभा।
भारतीय लोकतंत्र में शायद ही ऐसा कोई संसदीय क्षेत्र होगा, जहां पांच मर्तबा लोकसभा का उपचुनाव हुआ हो। परंतु बांका के मतदाता एक नवंबर को पांचवीं बार उपचुनाव में वोट डालेंगे। आजादी के बाद प्रथम लोकसभा का चुनाव 1952 में हुआ जब यहां से सुषमा सेन निर्वाचित हुई। 1957 से 62 तक शंकुतला देवी ने बांका का संसद में प्रतिनिधित्व किया। चौथे आम चुनाव में 1967 से 71 तक पंडित वेणी शंकर शर्मा यहां से चुनाव जीते।

पांचवीं लोक सभा चुनाव में 1971 से 73 तक शिव चंडिका प्रसाद यहां से संसद चुने गये। लेकिन वर्ष 73 में उनके निधन के बाद पहली मर्तबा यहां के लोगों को उपचुनाव का सामना करना पड़ा। वर्ष 1973 में बांका लोकसभा क्षेत्र के लिए हुए प्रथम उपचुनाव में मधुलिमए निर्वाचित हुए। वे 73 से 80 तक यहां के सांसद रहे।
वर्ष 1980 के आम चुनाव में चंद्रशेखर सिंह यहां से विजयी हुए। लेकिन वर्ष 1983 में उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद बांका संसदीय सीट पर वर्ष 84 में दोबारा उपचुनाव हुआ और यहां से मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह की पत्‍‌नी मनोरमा सिंह संसद के रूप में निर्वाचित हुई। वर्ष 1985 में चंद्रशेखर सिंह को राजीव गांधी केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलने के बाद उनकी पत्नी मनोरमा देवी ने बांका सीट से इस्तीफा दे दी। तब जाकर यहां तीसरी बार वर्ष 85 में यहां लोकसभा का उपचुनाव हुआ।
लेकिन चंद्रशेखर सिंह के निधन हो जाने के बाद यहां चौथी बार वर्ष 1986 में लोकसभा का उपचुनाव हुआ और स्व. सिंह की पत्नी मनोरमा सिंह यहां से निर्वाचित हुई। 1989 एवं 91 के आम चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के समधी प्रताप सिंह यहां से सांसद चुने गये। उसके बाद 96 में गिरधारी यादव, 99 में दिग्विजय सिंह, 04 में गिरधारी यादव एवं 2009 के संसदीय चुनाव में दिग्विजय सिंह बांका से सांसद के रूप में निर्वाचित हुए। लेकिन वर्ष 2010 में दिग्विजय सिंह के निधन हो जाने के बाद 01 नवंबर को यहां पांचवीं बार लोकसभा का उपचुनाव होना है।

तेलडीहा में नहीं कटेगा पाठा

तेलडीहा से खबर है कि वहां पाठा बलि पर रोक लगा गई है। दैनिक जागरण में 24 अक्टूबर को छपी खबर हू-बू-हू आपके लिए पेश है।
श्रीश्री 108 कृष्ण काली भगवती तेलडीहा हरवंशपुर के प्रसिद्ध दुर्गा मंदिर में विगत दिनों हुए हादसे में दर्जनों लोगों की मौत के बाद पाठा बलि पर बांका जिला प्रशासन ने मौखिक आदेश से रोक लगा दी है।
डीएम ने महानवमी के दिन पाठा बलि के क्रम में एक दर्जन से अधिक लोगों के कुचल कर मर जाने की घटना की गंभीरता से लेते हुए ऐसा आदेश दिया। इस आदेश के मद्देनजर मेढ़पति भी अब अपने पाठा की बलि नहीं देंगे। आदेश की जानकारी मेढ़पति परिवार के सदस्य सह सक्रिय व्यवस्थापक शंकर कुमार दास ने दी है। श्री दास ने बताया कि इसकी सूचना मंदिर में टांग दी गयी है।
तारापुर थाना की सीमा के समीप इस देवी मंदिर के प्रति आस्था रखने वालों में बांका, मुंगेर व भागलपुर जिले के अतिरिक्त दूर दराज के लोग शामिल हैं। इन क्षेत्रों के लाखों श्रद्धालु प्रति वर्ष यहां देवी के दर्शन के लिए आते हैं। पूजा के दौरान वहां बीस हजार से अधिक पाठे की बलि चढ़ायी जाती रही है। गत वर्ष तक वहां मेढ़ वापसी के समय भी हजारों की संख्या में पाठे की बलि दी गई थी। इस वर्ष बलि नहीं दी जा सकेगी। प्रशासन के इस निर्णय से कही खुशी तो कहीं गम का माहौल बना हुआ है।

Friday, October 22, 2010

हादसे से पहले का हाल

दोस्तो, दशहरा मैं छतहार गया था, लिहाजा ब्लॉग अपडेशन का काम नहीं हो पाया। इस बीच, एक बड़ी खबर आपको वक्त पर नहीं मिली। हालांकि, मुझे मालूम है छतहार के अपने रिश्तेदारों और टीवी-अखबारों के जरिये इस खबर से आप वाकिफ हो चुके होंगे।
मित्रो, छतहार और आसपास के इलाकों में दुर्गा पूजा धूमधाम से संपन्न हो गई, लेकिन जाने के साथ छोड़ गईं एक दुखद याद। महानवमी की शाम छतहार पंचायत के टेलडीहा मंदिर में भगदड़ मचने से भीषण हादसा हो गया। बकरे की बलि के लिए कुछ लोगों ने ऐसी हड़बड़ी मचाई कि मंदिर का ग्रिल टूट गया, लोग एक दूसरे पर गिरते चलते गए। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक १० लोग मारे गए, हालांकि चश्मदीदों के मुताबिक मरने वालों की तादाद १४ है। प्रशासन ने मरने वालों के घरवालों को एक-एक लाख की सहायता राशि देने का एलान किया है, लेकिन जान की कीमत भला किसी रकम चुकाई जा सकती है क्या।
हमारी कामना है कि टेलडीहा मां मृतकों की आत्मा को शांति दें और उनके घरवालों को नए सिरे से जिंदगी शुरू करने का ढांढ़स। मित्रों, महाअष्टमी की शाम, यानि भगदड़ से ठीक २४ घंटे पहले मैं उसी मंदिर के बाहर था और ब्लॉग के लिए तस्वीरें उतार रहा था। पेश हैं, टेलडीहा की हादसे से पहले की तस्वीरें।
मंदिर परिसर में जमा श्रद्धालुओं की भारी भीड़
श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था बनाते भोलेशंकर मिश्र
श्रद्धालुओं में महिलाओं की तादाद सबसे ज्यादा थी

मंदिर के ठीक बाहर का नजारा
मंदिर का बाहरी हिस्सा

Monday, October 18, 2010

मां के दरबार का दुर्गम रास्ता

महाअष्टमी के दिन तेलधिया मां के दर्शन को जातीं महिला श्रद्घालु
खेतों के बीच बनी पगडंडियों से गुजरते श्रद्धालु
दुर्गम रास्तों से गुजरते श्रद्धालु

Wednesday, October 13, 2010

चुनावी रंग में छतहार

देश अगर त्योहारों के रंग में रंगा है तो बिहार में लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व चुनाव के रंग में। छतहार भी इससे बचा नहीं है। हो भी क्यों ना छतहार के मतदाताओं को तो दो-दो वोट डालने हैं। अमरपुर विधानसभा से विधायक चुनने के लिए और बांका लोकसभा से सांसद चुनने के लिए। माननीय दिग्विजय सिंह के निधन से ये सीट खाली हुई है।
दिग्विजय बाबू की यादों को जिंदा रखने के लिए उनकी पत्नी श्रीमती पुतुल सिंह बतौर निर्दलीय यहां से चुनाव लड़ रही हैं। मंगलवार को पर्चा दाखिल करने से पहले उन्होंने लोकसभा क्षेत्र का सघन दौरा किया और इसी सिलसिले में वो छतहार भी आईं। अपने भाई श्री त्रिपुरारी सिंह, परिवार के अन्य लोगों और छतहार पंचायत के मुखिया श्री मनोज कुमार सिंह के साथ वो गांव के लोगों और महिलाओं से खासतौर पर मिलीं। दिग्विजय बाबू के सपनों को साकार करने का वादा किया। इस दौरान कई ऐसे पल भी आए जब उनसे मिलते हुए लोग भावुक हो गए।
श्रीमती पुतुल सिंह को जनता दल यूनाइटेड का भी समर्थन हासिल है। ऐसी चर्चा है कि कांग्रेस भी उनका समर्थन करेगी। हालांकि, बांका से अपना उम्मीदवार ना खड़ने का वादा आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव नहीं निभा पाए। दिग्विजय बाबू की अंत्येष्टि के वक्त आरजेडी सुप्रीमो ने कहा था कि अगर श्रीमती पुतुल सिंह बांका से चुनाव लड़ती हैं तो वो अपनी पार्टी का उम्मीदवार खड़ा नहीं करेंगे। लेकिन, चुनाव के एलान के बाद आरजेडी ने जयप्रकाश यादव के रूप में अपना प्रत्याशी उतार दिया है।
फिलहाल, श्रीमती पुतुल सिंह के पक्ष में सहानुभूति लहर है। लेकिन, वोट में ये कितना तब्दील हो पाएगा ये चुनाव के दिन ही पता लगेगा।
बहरहाल श्री पुतुल सिंह ने मंगलवार को अपना पर्चा दाखिल कर दिया। इस मौके पर छतहार से श्री वेदानंद सिंह उर्फ सोहन बाबू, जीवन सिंह समेत बड़ी तादाद में लोग मौजूद थे।