छतहार इन दिनों चुनावी बुखार में तप रहा है। मतदाता एक नवंबर को एक साथ बांका लोकसभा उपचुनाव और अमरपुर विधानसभा चुनाव में वोट डालेंगे। हमारी कोशिश है कि चुनाव को लेकर राष्ट्रीय मीडिया में जो कुछ छप रहा है,उससे आपको अवगत कराएं। पेश है दैनिक जागरण में छपा एक लेख कि क्यों बांका है अनूठा लोकसभा।
भारतीय लोकतंत्र में शायद ही ऐसा कोई संसदीय क्षेत्र होगा, जहां पांच मर्तबा लोकसभा का उपचुनाव हुआ हो। परंतु बांका के मतदाता एक नवंबर को पांचवीं बार उपचुनाव में वोट डालेंगे। आजादी के बाद प्रथम लोकसभा का चुनाव 1952 में हुआ जब यहां से सुषमा सेन निर्वाचित हुई। 1957 से 62 तक शंकुतला देवी ने बांका का संसद में प्रतिनिधित्व किया। चौथे आम चुनाव में 1967 से 71 तक पंडित वेणी शंकर शर्मा यहां से चुनाव जीते।
पांचवीं लोक सभा चुनाव में 1971 से 73 तक शिव चंडिका प्रसाद यहां से संसद चुने गये। लेकिन वर्ष 73 में उनके निधन के बाद पहली मर्तबा यहां के लोगों को उपचुनाव का सामना करना पड़ा। वर्ष 1973 में बांका लोकसभा क्षेत्र के लिए हुए प्रथम उपचुनाव में मधुलिमए निर्वाचित हुए। वे 73 से 80 तक यहां के सांसद रहे।
वर्ष 1980 के आम चुनाव में चंद्रशेखर सिंह यहां से विजयी हुए। लेकिन वर्ष 1983 में उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद बांका संसदीय सीट पर वर्ष 84 में दोबारा उपचुनाव हुआ और यहां से मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह की पत्नी मनोरमा सिंह संसद के रूप में निर्वाचित हुई। वर्ष 1985 में चंद्रशेखर सिंह को राजीव गांधी केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलने के बाद उनकी पत्नी मनोरमा देवी ने बांका सीट से इस्तीफा दे दी। तब जाकर यहां तीसरी बार वर्ष 85 में यहां लोकसभा का उपचुनाव हुआ।
लेकिन चंद्रशेखर सिंह के निधन हो जाने के बाद यहां चौथी बार वर्ष 1986 में लोकसभा का उपचुनाव हुआ और स्व. सिंह की पत्नी मनोरमा सिंह यहां से निर्वाचित हुई। 1989 एवं 91 के आम चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के समधी प्रताप सिंह यहां से सांसद चुने गये। उसके बाद 96 में गिरधारी यादव, 99 में दिग्विजय सिंह, 04 में गिरधारी यादव एवं 2009 के संसदीय चुनाव में दिग्विजय सिंह बांका से सांसद के रूप में निर्वाचित हुए। लेकिन वर्ष 2010 में दिग्विजय सिंह के निधन हो जाने के बाद 01 नवंबर को यहां पांचवीं बार लोकसभा का उपचुनाव होना है।
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