आदरणीय नीतीश कुमार जी।
आपके सुशासन की बड़ी तारीफ सुनी थी। देश की मीडिया में सुर्खियां बन रही थीं आपका विकास मॉडल। भारतीय रेल के कायाकल्प में आपके पूर्ववर्ती लालू प्रसाद यादव के प्रबंधन मॉडल की तरह देश के शीर्ष मैनेजमेंट कॉलेजों में आपके प्रबंधन मॉडल पर बहस होने लगी थी। इन्हीं चर्चाओं के बूते आप बिहार में भारी बहुमत से दूसरी बार सत्ता में भी आए। बिहार के छोटे से अपने गांव से सैकड़ों मील दूर दिल्ली में बैठकर मुझे आपके सुशासन की इन तारीफों से बड़ी खुशी हो रही थी। गर्व हो रहा था कि चलो कम से कम अच्छी वजहों से सूबे से बाहर बिहार की तारीफ तो हो रही है। नहीं तो अब तक दिल्ली में बिहारी शब्द का मतलब क्या होता था इसका दर्द हम प्रवासी बिहार वाले ही जानते हैं। खैर, सुशासन के इन चर्चों को सुनते हुए मन बेसब्री से इंतजार कर रहा था बदले बिहार को देखने का। मन में बड़ी कुलबुलाहट हो रही थी कि तारापुर से अपने गांव जाने वाली सड़क का हाल देखने की, जो पिछले 25 सालों में विकास की उल्टी रफ्तार पर चल रही थी। मुझे याद है 1987-88 में बड़ुवा नदी पर महत्वाकांक्षी पुल बनकर तैयार हुआ था। तब हम अपने कार वाले रिश्तेदारों को गर्व से बताया करते थे कि चिंता के कौनो बात नै छय... अब त घर तक गाड़ी आबै छैय...1990 तक आते-आते तारापुर से छतहार तक चमचमाती पक्की सड़कें बनकर तैयार हो चुकी थीं।
लेकिन, लगता है आने वाला वक्त छतहारवालों पर बेरहम था। लालू शासन में पूरे बिहार की तरह तारापुर-छतहार की सड़क ने भी दम तोड़ दिया। आप ऊपर तस्वीरों में देख रखते हैं सड़क का हाल। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि ये सड़क छतहार ही नहीं मालडा, गुलनीकुशहा, खौजरी, टीना, मिर्जापुर समेत कई गांवों के हजारों लोगों का जरिया है करीबी शहर तारापुर पहुंचने का।
खैर, लालू काल में सड़कें टूटती रहीं... परेशानियां बढ़ती रहीं.. लेकिन किसी ने सुध नहीं ली। सुध लेता भी कौन पूरे बिहार का तब यही हाल तो था। बहरहाल, सुशासन के वादे के साथ आप सत्ता में आए। पूरे बिहार में कथित तौर पर सड़कों पर काम शुरू हो गया। बिहार से खबरें आने लगीं कि अब बिहार पहले वाला नहीं रहा। नीतीशजी खूब काम करा रहे हैं। पांच साल में बिहार बदल जाएगा।
मन में खुशी हुई। जब भी गांव किसी को फोन करता पूछता गांव की सड़क पर काम शुरू हुआ क्या? जवाब में हर बार ना ही मिला। सुशासन का सब्जबाग दिखाते-दिखाते आपने पांच साल पूरे कर लिए। कुछ जगहों पर सड़कें बनीं... और हमारे गांव की तरह ज्यादातर हिस्सों में बेबसी बनी रही। चुनाव आया। आपने नारा दिया कुछ तो किया। जनता ने भरोसा किया और आपको भारी बहुमत मिल गया। लेकिन, नीतीश जी आपके दूसरे कार्यकाल का सालभर होने को है और मैं आपको आपके तथाकथित सुशासन की कुछ तस्वीरें दिखाना चाहता हूं। उम्मीद है आप इस पर गौर करेंगे।
नीतीशजी, ये जो तस्वीर आप देख रहे हैं ये बड़ुवा पुल को छतहार से जोड़ने वाली तस्वीर है। बताने की जरुरत नहीं कि सड़क दोनों तरफ से बुरी तरह कटी हुई है और यहां थोड़ा भी संतुलन खोने का मतलब है बड़ा हादसा। गौर से आप देखेंगे तो पाएंगे कि बाईं तरफ की सड़क इतनी कट चुकी है कि पैदल चलने तक का रास्ता नहीं बचा है।
ये तस्वीर पहली तस्वीर से थोड़ा पहले खींची गई है। यहां दायीं तरफ सड़क टूट चुकी है।
तस्वीर में आप देख सकते हैं सड़क टूट कर किस तरह संकरी हो गई है।
ये छतहार-तारापुर सड़क की सबसे डरावनी तस्वीरों में एक है। 15 साल पहले आई बाढ़ में जब पानी छतहार तक घुस गया था तो ये सड़क कट गई थी। तब से इसकी मरम्मत नहीं हुई है। दायीं ओर करीब तीन फुट गहरा गड्ढा है जो घास से ढंका हुआ है। शाम के अंधेरे में यहां कभी भी कोई हादसा हो सकता है।
नीतीश बाबू, ये तस्वीर देखिये और बताइये इसमें सड़क कहां है। आप बता दें तो हम आपके सुशासन के दावे को मान लेंगे।
जर्जर सड़क का एक और नमूना पेश है। सड़क बुरी तरह कट चुकी है। नीचे गहरा गड्ढा। यहां से गुजरना जोखिम से कम नहीं।
पूरे रास्ते में ज्यादातर जगहों पर फुटपाथ और सड़क के बीच करीब एक-डेढ़ फीट का अंतर आ चुका है। ऐसे में अक्सर यहां रिक्शा या वाहन पलटने के हादसे होते रहते हैं।
यहां तो सड़क ही खत्म हो चुकी है। किसी तरह गांव वालों के प्रयास से मिट्ठीभर चलने के लायक बनाया गया है।
ये नदी के पार मोहनगंज से पहले की सड़क है। तारकोल उतर चुका है। अब सिर्फ मिट्टी ही मिट्टी है। गड्ढों की तो पूछिये ही मत।
मोहनगंज में प्रवेश से ठीक पहले की है ये तस्वीर। सड़क संकीर्ण और जर्जर है। फुटपाथ और सड़क के बीच लेवल इतना असामान्य है कि जब आमने-सामने से दो वाहनों को गुजरना हो तो लंबा जाम लग जाता है क्योंकि कोई अपनी गाड़ी नीचे नहीं उतारना चाहता। इसी वजह से अक्सर यहां लंबा जाम लगा रहता है। आपकी जानकारी के लिए ये बता दूं कि सुल्तानगंज से देवघर जाने वाले कांवड़ियों का ये नया रूट है। इतनी पौराणिक और धार्मिक यात्रा के मार्ग का ये हाल.. आप देश में बिहार की कौन सी तस्वीर पेश करना चाहते हैं नीतीश बाबू।
मुख्यमंत्री जी, ये हाल तब है जब तारापुर विधानसभा में आपकी ही पार्टी की नीता चौधरी विधायक हैं। नदी से मोहनगंज तक की सड़क नीताजी के क्षेत्र में ही आता है। छतहार वालों की शिकायत है कि चूंकि इस मार्ग का इस्तेमाल अमरपुर विधानसभा क्षेत्र में पड़ने वाले छतहार और दूसरे गांव के लोग करते हैं, इसलिए नीताजी इस सड़क की सुध नहीं ले रहीं। उन्हें लगता है कि इससे उनके वोट पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला क्योंकि छतहार और बाकी गांव के लोग तो तारापुर वोट करने आएंगे नहीं। यानी, सीमा विवाद की भेंट चढ़ गई है ये सड़क।
नीतीश जी, जब उम्मीदें टूटती हैं तो मन में पीड़ा होती है। यही व्यथा आज हमारे गांव के लोगों की ही है। आपसे उन्हें उम्मीदें बंधी थीं, लेकिन अब टूट चुकी हैं। यकीन मानिये पहली बार मुझे इतना दुख हुआ बिहार जाकर। पिताजी की बड़ी इच्छा थी घर पर एक कार हो। मेरी भी इच्छा थी उनकी ये ख्वाहिश पूरी कर दूं। लेकिन, इन सड़कों पर कार चलेगी कैसे? नीतीश बाबू क्या आप एक बेटे की व्यथा समझेंगे?
लेकिन, कहते हैं ना जिंदगी चलने का नाम है। छतहार के लोगों की भी जिंदगी किसी तरह चल ही रही है इस गाड़ी की तरह, जहां जानवरों की तरह इंसान ठुंसे हुए हैं।
और आखिर में नीतीश जी, दुनिया अब बड़ी छोटी हो गई है। छतहार भले ही छोटा सा गांव है, लेकिन छतहार के लोग दुनिया के कई हिस्सों में फैले हुए हैं। वो बिहार के बाहर देख चुके हैं कि विकास क्या होता है। सड़क का मतलब क्या होता है। आप उन्हें बहला नहीं सकते। कुछ तो किया का नारा एक बार तो चल गया,लेकिन बार-बार नहीं चल सकता। अगर आप वाकई विकास के पैरोकार हैं तो मेरे गांव की इस सड़क का उद्धार कर दीजिए। मेरे लिए यही बिहार के विकास का बैरोमीटर है। उम्मीद है, किसी ना किसी माध्यम से आप तक मेरी ये व्यथा जरूर पहुंचेगी।
आपका,
हिमांशु कुमार मिश्र
आपके सुशासन की बड़ी तारीफ सुनी थी। देश की मीडिया में सुर्खियां बन रही थीं आपका विकास मॉडल। भारतीय रेल के कायाकल्प में आपके पूर्ववर्ती लालू प्रसाद यादव के प्रबंधन मॉडल की तरह देश के शीर्ष मैनेजमेंट कॉलेजों में आपके प्रबंधन मॉडल पर बहस होने लगी थी। इन्हीं चर्चाओं के बूते आप बिहार में भारी बहुमत से दूसरी बार सत्ता में भी आए। बिहार के छोटे से अपने गांव से सैकड़ों मील दूर दिल्ली में बैठकर मुझे आपके सुशासन की इन तारीफों से बड़ी खुशी हो रही थी। गर्व हो रहा था कि चलो कम से कम अच्छी वजहों से सूबे से बाहर बिहार की तारीफ तो हो रही है। नहीं तो अब तक दिल्ली में बिहारी शब्द का मतलब क्या होता था इसका दर्द हम प्रवासी बिहार वाले ही जानते हैं। खैर, सुशासन के इन चर्चों को सुनते हुए मन बेसब्री से इंतजार कर रहा था बदले बिहार को देखने का। मन में बड़ी कुलबुलाहट हो रही थी कि तारापुर से अपने गांव जाने वाली सड़क का हाल देखने की, जो पिछले 25 सालों में विकास की उल्टी रफ्तार पर चल रही थी। मुझे याद है 1987-88 में बड़ुवा नदी पर महत्वाकांक्षी पुल बनकर तैयार हुआ था। तब हम अपने कार वाले रिश्तेदारों को गर्व से बताया करते थे कि चिंता के कौनो बात नै छय... अब त घर तक गाड़ी आबै छैय...1990 तक आते-आते तारापुर से छतहार तक चमचमाती पक्की सड़कें बनकर तैयार हो चुकी थीं।
लेकिन, लगता है आने वाला वक्त छतहारवालों पर बेरहम था। लालू शासन में पूरे बिहार की तरह तारापुर-छतहार की सड़क ने भी दम तोड़ दिया। आप ऊपर तस्वीरों में देख रखते हैं सड़क का हाल। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि ये सड़क छतहार ही नहीं मालडा, गुलनीकुशहा, खौजरी, टीना, मिर्जापुर समेत कई गांवों के हजारों लोगों का जरिया है करीबी शहर तारापुर पहुंचने का।
खैर, लालू काल में सड़कें टूटती रहीं... परेशानियां बढ़ती रहीं.. लेकिन किसी ने सुध नहीं ली। सुध लेता भी कौन पूरे बिहार का तब यही हाल तो था। बहरहाल, सुशासन के वादे के साथ आप सत्ता में आए। पूरे बिहार में कथित तौर पर सड़कों पर काम शुरू हो गया। बिहार से खबरें आने लगीं कि अब बिहार पहले वाला नहीं रहा। नीतीशजी खूब काम करा रहे हैं। पांच साल में बिहार बदल जाएगा।
मन में खुशी हुई। जब भी गांव किसी को फोन करता पूछता गांव की सड़क पर काम शुरू हुआ क्या? जवाब में हर बार ना ही मिला। सुशासन का सब्जबाग दिखाते-दिखाते आपने पांच साल पूरे कर लिए। कुछ जगहों पर सड़कें बनीं... और हमारे गांव की तरह ज्यादातर हिस्सों में बेबसी बनी रही। चुनाव आया। आपने नारा दिया कुछ तो किया। जनता ने भरोसा किया और आपको भारी बहुमत मिल गया। लेकिन, नीतीश जी आपके दूसरे कार्यकाल का सालभर होने को है और मैं आपको आपके तथाकथित सुशासन की कुछ तस्वीरें दिखाना चाहता हूं। उम्मीद है आप इस पर गौर करेंगे।
नीतीशजी, ये जो तस्वीर आप देख रहे हैं ये बड़ुवा पुल को छतहार से जोड़ने वाली तस्वीर है। बताने की जरुरत नहीं कि सड़क दोनों तरफ से बुरी तरह कटी हुई है और यहां थोड़ा भी संतुलन खोने का मतलब है बड़ा हादसा। गौर से आप देखेंगे तो पाएंगे कि बाईं तरफ की सड़क इतनी कट चुकी है कि पैदल चलने तक का रास्ता नहीं बचा है।
ये तस्वीर पहली तस्वीर से थोड़ा पहले खींची गई है। यहां दायीं तरफ सड़क टूट चुकी है।
तस्वीर में आप देख सकते हैं सड़क टूट कर किस तरह संकरी हो गई है।
ये छतहार-तारापुर सड़क की सबसे डरावनी तस्वीरों में एक है। 15 साल पहले आई बाढ़ में जब पानी छतहार तक घुस गया था तो ये सड़क कट गई थी। तब से इसकी मरम्मत नहीं हुई है। दायीं ओर करीब तीन फुट गहरा गड्ढा है जो घास से ढंका हुआ है। शाम के अंधेरे में यहां कभी भी कोई हादसा हो सकता है।
नीतीश बाबू, ये तस्वीर देखिये और बताइये इसमें सड़क कहां है। आप बता दें तो हम आपके सुशासन के दावे को मान लेंगे।
जर्जर सड़क का एक और नमूना पेश है। सड़क बुरी तरह कट चुकी है। नीचे गहरा गड्ढा। यहां से गुजरना जोखिम से कम नहीं।
पूरे रास्ते में ज्यादातर जगहों पर फुटपाथ और सड़क के बीच करीब एक-डेढ़ फीट का अंतर आ चुका है। ऐसे में अक्सर यहां रिक्शा या वाहन पलटने के हादसे होते रहते हैं।
यहां तो सड़क ही खत्म हो चुकी है। किसी तरह गांव वालों के प्रयास से मिट्ठीभर चलने के लायक बनाया गया है।
ये नदी के पार मोहनगंज से पहले की सड़क है। तारकोल उतर चुका है। अब सिर्फ मिट्टी ही मिट्टी है। गड्ढों की तो पूछिये ही मत।
मोहनगंज में प्रवेश से ठीक पहले की है ये तस्वीर। सड़क संकीर्ण और जर्जर है। फुटपाथ और सड़क के बीच लेवल इतना असामान्य है कि जब आमने-सामने से दो वाहनों को गुजरना हो तो लंबा जाम लग जाता है क्योंकि कोई अपनी गाड़ी नीचे नहीं उतारना चाहता। इसी वजह से अक्सर यहां लंबा जाम लगा रहता है। आपकी जानकारी के लिए ये बता दूं कि सुल्तानगंज से देवघर जाने वाले कांवड़ियों का ये नया रूट है। इतनी पौराणिक और धार्मिक यात्रा के मार्ग का ये हाल.. आप देश में बिहार की कौन सी तस्वीर पेश करना चाहते हैं नीतीश बाबू।
मुख्यमंत्री जी, ये हाल तब है जब तारापुर विधानसभा में आपकी ही पार्टी की नीता चौधरी विधायक हैं। नदी से मोहनगंज तक की सड़क नीताजी के क्षेत्र में ही आता है। छतहार वालों की शिकायत है कि चूंकि इस मार्ग का इस्तेमाल अमरपुर विधानसभा क्षेत्र में पड़ने वाले छतहार और दूसरे गांव के लोग करते हैं, इसलिए नीताजी इस सड़क की सुध नहीं ले रहीं। उन्हें लगता है कि इससे उनके वोट पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला क्योंकि छतहार और बाकी गांव के लोग तो तारापुर वोट करने आएंगे नहीं। यानी, सीमा विवाद की भेंट चढ़ गई है ये सड़क।
नीतीश जी, जब उम्मीदें टूटती हैं तो मन में पीड़ा होती है। यही व्यथा आज हमारे गांव के लोगों की ही है। आपसे उन्हें उम्मीदें बंधी थीं, लेकिन अब टूट चुकी हैं। यकीन मानिये पहली बार मुझे इतना दुख हुआ बिहार जाकर। पिताजी की बड़ी इच्छा थी घर पर एक कार हो। मेरी भी इच्छा थी उनकी ये ख्वाहिश पूरी कर दूं। लेकिन, इन सड़कों पर कार चलेगी कैसे? नीतीश बाबू क्या आप एक बेटे की व्यथा समझेंगे?
लेकिन, कहते हैं ना जिंदगी चलने का नाम है। छतहार के लोगों की भी जिंदगी किसी तरह चल ही रही है इस गाड़ी की तरह, जहां जानवरों की तरह इंसान ठुंसे हुए हैं।
और आखिर में नीतीश जी, दुनिया अब बड़ी छोटी हो गई है। छतहार भले ही छोटा सा गांव है, लेकिन छतहार के लोग दुनिया के कई हिस्सों में फैले हुए हैं। वो बिहार के बाहर देख चुके हैं कि विकास क्या होता है। सड़क का मतलब क्या होता है। आप उन्हें बहला नहीं सकते। कुछ तो किया का नारा एक बार तो चल गया,लेकिन बार-बार नहीं चल सकता। अगर आप वाकई विकास के पैरोकार हैं तो मेरे गांव की इस सड़क का उद्धार कर दीजिए। मेरे लिए यही बिहार के विकास का बैरोमीटर है। उम्मीद है, किसी ना किसी माध्यम से आप तक मेरी ये व्यथा जरूर पहुंचेगी।
आपका,
हिमांशु कुमार मिश्र