आपसे निवेदन

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Saturday, April 24, 2010

पढ़ना है? चलो पुस्तकालय चलें

छतहार बदल रहा है। छतहार बदल गया है। लेकिन इस बदलाव का स्वागत कीजिए क्योंकि ये बदलाव सकारात्मक है। ये बदलाव रचनात्मक है।
पिछले दिनों मुखियाजी दिल्ली आए थे। बात चली बिहार की। छतहार पंचायत की। पंचायत में चल रहे थे विकास कार्यों की। मुखियाजी बोले अब छतहार पहले जैसा नहीं रहा। विकास का काम जोरों पर है। सड़कें बन रही हैं। छतहार स्कूल नये कलेवर में आ चुका है। पंचायत के दूसरे गावों भी शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव की रोशनी से नहा रहे हैं। किसी बच्चे को पढ़ने के लिए अब मीलों पैदल चलने की जरुरत नहीं रही। वो जमाना गया जब हम पैंट उतारकर बड़ुआ नदी पार कर शिशु ज्ञान मंदिर जाते थे। अब सब अपने गांव में पढ़ेगा। मां-बाप के नजरों के सामने रहेगा।
चलिये मुखियाजी, आपका कहना तो सही है कि आपने पंचायत के तकरीबन हर गांव को स्कूल दे दिया, लेकिन उन नौजवानों का क्या जिनके घर में वो माहौल नहीं कि सकून से बैठकर हाई स्कूल या कॉलेज का होमवर्क पूरा कर सकें? या फिर प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर सकें? क्या आपने ऐसे नौजवानों के बारे में कुछ सोचा है?
जरूर सोचा है और किया भी है। तपाक से बोले मुखियाजी। अगर देखना है तो आइये शहीद विश्वनाथ सिंह पुस्तकालय। राय टोला के पास डाढ़ के किनारे एक बड़ी बिल्डिंग में चल रहा है ये पुस्तकालय। हालांकि, गांव में धोबिया टोला के पास पहले भी एक पुस्तकालय था, लेकिन पढ़ने के लिए कभी कोई वहां गया हो याद नहीं आता। लेकिन, इस पुस्तकालय में मुखियाजी की पहल पर हर रोज यहां अखबार आता है। नौजवान तो नौजवान, गांव के बड़े-बूढ़े भी रोजाना खबरों की भूख मिटाने यहां आते हैं। यही नहीं, हर महीने पत्र-पत्रिकाएं भी पुस्तकालय के लिए मंगवाई जाती हैं। लेकिन, सिर्फ अखबार और पत्रिका पढ़ने लोग यहां नहीं आते। गांव के किशोर पढ़ाई करने भी यहां आते हैं। कभी दुपहरी में आइये देखिये कैसे हमारे बच्चे ग्रुप स्टडी करते हैं। इस बदलाव पर आप भी हैरान रह जाएंगे।
शहीद विश्वनाथ सिंह पुस्तकालय की बात चली है तो शहीद विश्वनाथ के बारे में भी जरा आपको बता दें। विश्वनाथ सिंह का नाम छतहार के महान देशभक्तों में बड़े गर्व से लिया जाता है। 15 फरवरी 1932 को तारापुर थाना पर झंडा फहराने की कोशिश में वो शहीद हुए थे। उनकी यादों को जिंदा रखने के लिए 2005 में शहीद विश्वनाथ सिंह पुस्तकालय की स्थापना हुई। शहीद विश्वनाथ सिंह पुस्तकालय के लिए तत्कालीन सांसद और विदेश राज्यमंत्री भारत सरकार श्री दिग्विजय सिंह ने ढाई लाख रुपये दिए थे। यही नहीं, शहीद विश्वनाथ की याद में साल 2001 से पांच साल तक शानदार क्रिकेट टूर्नामेंट का भी आयोजन हुआ। अपने वक्त में ये इलाके का सबसे प्रतिष्ठित क्रिकेट टूर्नामेंट माना जाता था।
खैर ये तो हुई शहीद विश्वनाथ के बारे में बातें। लेकिन, भूलियेगा नहीं। कभी कुछ पढ़ने का मन करे तो एक बार शहीद विश्वनाथ सिंह पुस्तकालय जरूर आइयेगा।

Thursday, April 22, 2010

ग्राम पंचायत में कौन-क्या

  • ग्राम पंचायत कार्यकारिणी

    मुखिया- श्री मनोज कुमार मिश्र
    उपमुखिया- श्रीमती रंजिता शर्मा
    वार्ड सदस्य संख्या-1 (ग्राम-सहरोय गोयड़ा) श्रीमती रिंकू देवी (पिछड़ी जाति, महिला)
    वार्ड सदस्य संख्या 2 (ग्राम अंबा गोयड़ा) श्रीमती रीता देवी (अनुसूचित जाति, महिला)
    वार्ड सदस्य संख्या 3 (ग्राम तिलडीहा) श्री विशुनदेव मंडल (अति पिछड़ा वर्ग)
    वार्ड सदस्य संख्या 4 (ग्राम हरिवंशपुर) श्रीमती सविता देवी (महिला, अनारक्षित)
    वार्ड सदस्य संख्या 5 (ग्राम धनिहार) श्रीमती दुलारी देवी (अति पिछड़ा वर्ग, महिला)
    वार्ड सदस्य संख्या 6 (ग्राम छतहार) श्रीमती मीना देवी (अनारक्षित महिला)
    वार्ड सदस्य संख्या 7 (ग्राम छतहार) श्रीमती प्रभाती देवी (अनारक्षित महिला)
    वार्ड सदस्य संख्या 8 (ग्राम छतहार) श्री श्रीकांत झा (अनारक्षित)
    वार्ड सदस्य संख्या 9 (ग्राम छतहार) श्री राजू रविदास (अनूसूचित जाति)
    वार्ड सदस्य संख्या 10 (ग्राम मालडा) श्री अनिल पासवान (अनुसूचित जाति)
    वार्ड सदस्य संख्या 11 (ग्राम मिर्जापुर) श्रीमती नायडू देवी (अनारक्षित, महिला)
    वार्ड सदस्य संख्या 12 (ग्राम टीना) श्रीमती रंजिता शर्मा (अति पिछड़ा वर्ग महिला)

    सरपंच- श्री श्रीबाबू
    क्षेत्रीय पंचायत समिति सदस्य- श्री रासबिहारी सिंह
  • क्षेत्रीय जिला परिषद सदस्य- श्रीमती रीना रानी (अनूसूचित जाति महिला, ग्राम वैदपुर)

छतहार में स्वास्थ्य समिति का गठन


राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत ग्राम पंचायत की स्वास्थ्य समिति का गठन किया गया है। उपमुखिया श्रीमती रंजिता शर्मा समिति की अध्यक्ष बनाई गई हैं। अध्यक्ष रंजिता शर्मा और एएनएम ललित कुमारी के नाम से राष्ट्रीयकृत बैंक में संयुक्त खाता खोला गया है। समिति के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से प्रत्येक राजस्व ग्रामवार 10-10 हजार की राशि उपलब्ध कराई गई है। इस राशि का इस्तेमाल ग्रामीण स्वच्छता (जिसके तहत नालियों की सफाई, जलजमाव वाले जगहों पर ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव, कुओं में ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव, टूटे-फूटे नालियों की छोटी-मोटी मरम्मती, जमा कूड़ों को हटाना आदि), मानदेय पर मान्यता प्राप्त डॉक्टरों की सेवा लेकर आंगनबाड़ी केंद्र स्कूल के बच्चों के स्वास्थ्य जांच में किया जाएगा। सभी क्षेत्रीय वार्ड सदस्य अपने-अपने राजस्व ग्राम के कार्यों में प्रतिनिधि हैं। इसके साथ आंगनबाड़ी सेविका को भी समिति में रखा गया है। आपको बता दें कि छतहार में एक स्वास्थ्य उपकेंद्र पिछले १५ साल से कार्यरत है, जिसमें दो एएनएम की पदस्थापना स्वास्थ्य विभाग द्वारा की गई है। इसके अतिरिक्त छह आंगनबाड़ी केंद्रों के पोषक क्षेत्रवार छह आशा भी पिछले चार सालों से कार्यरत है।

Wednesday, April 21, 2010

छतहार : शिक्षा की ओर बढ़ते कदम

अब ना रहे कोई कागज कोरा। ये नारा है छतहार पंचायत का। सब पढ़ें, सब स्कूल जाएं, सरकार के इस नारे को साकार करने की दिशा में बढ़ चला है छतहार पंचायत। पंचायत के सभी बच्चों को प्राथमिक स्तर तक शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए छतहार के हर राजस्व ग्राम में इस समय स्कूल चल रहा है। पंचायत में कुल नौ स्कूल हैं। यानी पंचायत का तकरीबन हर गांव पर एक स्कूल। प्राथमिक स्तर तक शिक्षा पाने के लिए पंचायत के किसी बच्चे को एक किलोमीटर से ज्यादा रास्ता तय करने की जरुरत नहीं।
पंचायत का तकरीबन हर स्कूल सुविधा संपन्न है। इसमें सबसे ऊपर नाम आता है मध्य विद्यालय छतहार का, जिसे पंचायत के वर्तमान मुखिया श्री मनोज कुमार मिश्र पंचायत के मॉडल स्कूल के रूप में विकसित करने का सपना देख रहे हैं। ये मुखियाजी की कोशिशों का ही फल है कि 2007 से यहां आठवीं तक की पढ़ाई होने लगी है। अब इसे उच्च विद्यालय में प्रोन्नत करने की कोशिश चल रही है। इसकी संस्तुति ग्राम सभा, प्रखंड पंचायत समिति एवं जिला शिक्षा पदाधिकारी की तरफ से सरकार को भेजी जा चुकी है। अगर सरकार ने इस अनुशंसा को हरी झंडी दिखा दी तो यकीनन छतहार के लिए शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम होगा।
ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब छतहार स्कूल दो टूटे-फूटे कमरे में चलता था। बच्चे दो किलोमीटर दूर तारापुर जाकर पढ़ना पसंद करते थे, लेकिन छतहार स्कूल जाना पसंद नहीं आता था। लेकिन साल 2001 में श्री मनोज कुमार मिश्र के मुखिया बनने के बाद से स्कूल में क्रांतिकारी बदलाव हुए। उनकी कोशिशों में माननीय राज्यसभा सदस्य श्री जनार्दन यादव और छतहार के समाजसेवी श्री चंद्रमोहन सिंह का अहम योगदान रहा। श्री यादव ने अपने कोष से 1.94 लाख रुपये दिए, जिससे दो कमरा, एक बरामदा और एक कार्यालय कक्ष का निर्माण कराया गया।
समाजसेवी श्री चंद्रमोहन सिंह ने पहले 2.61 लाख रुपये की राशि से दो कमरा, एक बरामदा और एक सभा मंच का निर्माण कराया और फिर 2.55 लाख रुपये की राशि से स्कूल में चाहरदीवारी, मुख्य प्रवेश द्वार का निर्माण कराया। इसके अलावा पंचायत मुखिया के द्वारा दशम वित्त आयोग से 1.04 लाख रुपये एवं एकादश वित्त आयोग से 1.17 लाख रुपये की राशि से तीन कमरा का छत ढलाई और बरामदा के मरम्मत और सीढ़ी निर्माण का काम कराया गया। सर्व शिक्षा अभियान के तहत तीन अतिरिक्त वर्ग कक्षा का निर्माण कराया गया है।
इन्हीं कोशिशों का नतीजा है कि इस समय मध्य विद्यालय छतहार के पास 12 कमरे, एक संकुल संसाधन केंद्र और एक कार्यालय है। सभी कमरों में बिजली के पंखे लगे हुए हैं। छात्र-छात्राओं की सुविधा के लिए चार शौचालय भी है। पीने के पानी के लिए तीन हैंडपंप और एक कुआं है। स्वच्छ पानी के लिए जून महीने तक अक्वा गार्ड और पानी की टंकी बनाने की योजना है।
मध्य विद्यालय छतहार में इस वक्त करीबन नौ सौ बच्चे पढ़ते हैं। स्कूल की कीर्ति धीरे-धीरे पूरे इलाके में फैल चुकी है और दूसरे पंचायत के बच्चे भी यहां आकर पढ़ने आ रहे हैं। पिछले कुछ सालों से कक्षा आठ से करीब डेढ़ सौ बच्चे उत्तीर्ण होकर उच्च विद्यालय में पढ़ने जा रहे हैं।
लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति सिर्फ छतहार तक सीमित नहीं है बल्कि पंचायत के दूसरे गांव भी मुखियाजी की कोशिशों का लाभ उठा रहे हैं। श्री मनोज कुमार मिश्र की कोशिशों से मिर्जापुर, हरिवंशपुर और काशीडीह टीना में प्रोन्नत मध्य विद्यालय की शुरुआत हो चुकी है।
एक नजर छतहार पंचायत के स्कूलों पर
1. मध्यविद्यालय छतहार, 8 वीं तक की पढ़ाई, 12 कमरे, एक संकुल केंद्र, एक कार्यालय कक्ष, तीन चापाकल, 1 कुआं, 4 शौचालय
2. प्रोन्नत मध्य विद्यालय, मिर्जापुर, सुविधा- 3 कमरे निर्माणाधीन, छत ढलाई पूरा, दो चापाकल, एक यूनिट शौचालय
3. प्रोन्नत मध्य विद्यालय, हरिवंशपुर, सुविधा- 4 कमरा, दो चापाकल, एक यूनिट शौचालय
4. प्रोन्नत मध्य विद्यालय, काशीडीह, टीना. सुविधा- 5 कमरा, दो चापाकल
5. प्राथमिक विद्यालय, मालडा सुविधा- 2 कमरा, दो चापाकल
6. प्राथमिक विद्यालय, तिलडीहा (फिलहाल भवनविहीन)
7. प्राथमिक विद्यालय, अंबा गोयड़ा. सुविधा- 2 कमरा, दो चापाकल
8. प्राथमिक विद्यालय, बालाचक, सुविधा- 2 कमरा, एक कार्यालय, दो चापाकल
9. नव प्रोन्नत प्राथमिक विद्यालय, जुलाहा टोला, सहरोय गोयड़ा. सुविधा- 3 कमरा निर्माणाधीन, 1 किचन शेड निर्माणाधीन, एक चापाकल

Wednesday, April 14, 2010

बिसुआ पर छतहार की यादें

आज बिसुआ है। छतहार का लोक पर्व। वैसाखी के अगले रोज हर साल ये त्योहार मनाया जाता है। अभी-अभी हमें बिसुआ पर छतहार के निवासी दिव्यांशु भारद्वाज का लेख मिला है, जिसे हम आपके सामने पेश कर रहे हैं।
सुबह आंख खुली तो अनायास ही नजर खिड़की के रास्ते आसमान की तरफ चली गई। दिन चढ़ आया था। आसमान बिल्कुल कोरा था। कहीं से कोई आवाज भी नहीं आ रही थी। बकाट्टा (वो काटा)। अनायास याद आ गया, मैं तो गाजियाबाद में हूं। मन मेरा छतहार में घूम रहा था। जी हां, विसुआ है। छतहार और पास के इलाकों में मनाया जाने वाला लोकपर्व। हर साल ये पर्व १४ अप्रैल को मनाया जाता है। विसुआ की शुरुआत कैसी हुई, इसकी मान्यता क्या है, इसका तो पता नहीं लेकिन इतना जरूर पता है कि बचपन से लेकर जवानी तक जब तक गांव में रहा होली बीतते ही हम बिसुआ का इंतजार करने लगते थे। हमारे लिए विसुआ ही वो मौका होता था जब हम पतंग उड़ाते थे। जी हां, वाराणसी में लोग मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाते हैं तो दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस के दिन। लेकिन छतहार में विसुआ पर पतंग उड़ाने की प्रथा है।
यूं तो विसुआ के महीनाभर पहले ही छतहार का आसमान रंगबिरंगी पतंगों से ढंक जाता था, लेकिन पतंगबाजी के शौकीनों के लिए विसुआ फाइनल मैच की तरह आता। हम इसके लिए खास तैयारियां किया करते थे। एक महिना पहले से ही गुड्डी (पतंग) उड़ाना शुरू कर देते थे। मांझा बनाया जाता था। इसके लिए शीशा कूटना फिर मैदा, आरारोट आदि के गर्म मिश्रण में मिलाना होता था। फिर मांझा चढ़ाने का काम शुरू होता था। इसमें चार लोगों की जरूरत पड़ती थी। एक धागा लपेटने के लिए, एक ढील देने के लिए, एक लप्पो और एक चुटकी देने के लिए।
पतंग के कई प्रकार होते थे। अगर पतंग के नीचे कपड़े की डोर लगा दी जाती तो वो पुच्छड़ कहलाता था। बगैर पुच्छड़ वाला पतंग लखनउवा कहलाता। इसके अलावा रंग और डिजाइन के आधार पर भी इसके अलग-अलग नाम थे। अधकपारी, डंटेर, कबूतरी, आंखमार।
छतहार में अन्य जगहों की तुलना में गु्ड्डी उड़ाने का तरीका उल्टा है। जहां दूसरी जगहों पर हाथ से डोर को खींच कर पतंग उड़ाया जाता है, वहीं छतहार में लटेर का यूज करते हैं और पेंच लगाने में ढील दिया जाता है। इसलिए वहां गुड्डी दूर तक जाती है। एक बार मेरे और सोनू के पतंग के बीच पेंच लग गया।काफी देर तक चलता रहा। इसे देखने के चक्कर में सौरभ छत से नीचे गिर गया था।
बिसुआ की एक और परंपरा है। इस दिन किसी के यहां पका खाना नहीं बनता। लोग इस दिन सत्तू खाते हैं। रात में चावल-दाल आदि बनता है। यही चावल दूसरे रोज बसियौड़ा (बासी) के रूप में खाते हैं। दूसरा दिन सिरूआ के रूप में मनाया जाता है। बचपन के उन दिनों की बात ही कुछ और थी। कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन। बिसुआ की हार्दिक शुभकामनाएं।

Saturday, April 10, 2010

धरतीपुत्र

जिस तरह गांव की रफ्तार सुस्त होती है, वैसे ही छतहार की रफ्तार भी फिलहाल सुस्त है। चाल भले ही सुस्त हो, लेकिन रफ्तार कभी रुकेगी नहीं, इसका हम यकीन दिलाते हैं। आज हम इस ब्लॉग एक नया स्तंभ शुरू करने जा रहे हैं, जिसमें आप रूबरू होंगे छतहार के उन लोगों से जो अपनी जमीन खुद तैयार करने के लिए छतहार से दूर हैं। उनकी सांसों में बड़ुवा के पानी की खुशबू है, लेकिन जिंदगी की मजबूरी ने उन्हें अपनी माटी से दूर कर दिया है। ऐसे ही एक नौजवान से आज हम आपको मिलवाते हैं। मिलिए विकास मिश्र से जो नोएडा के एक एक्सपोर्ट हाउस में इस वक्त बतौर गारमेंट मर्चेडाइजर काम कर रहे हैं।
विकास, पहले तो शुक्रिया अपना कीमती वक्त देने के लिए। पहले ये बताइये गांव से सीधा उठकर एक गैर परंपरागत सेक्टर में कैसे आना हुआ? क्योंकि गांव में जहां बहुत सारी सुविधाएं नहीं होंती वहां तो लोगों का एकमात्र लक्ष्य सरकारी नौकरी होता है?

आपने बिल्कुल सही फरमाया। लेकिन, शुरुआत से ही मैं लीक से हटकर कुछ करना चाहता था। दरअसल, सरकारी नौकरी में मेरी कोई रुचि नहीं थी। मैंने अपने गांव के कई लोगों को देखा जो सरकारी नौकरी में थे लेकिन वो दफ्तर कब जाते थे, कब आते थे पता नहीं चलता था। उनकी रफ्तार थमी हुई थी। उनके जीवन में कोई चुनौती नहीं थी। मैं नई चुनौतियों का सामना करना चाहता था। अपनी लीक खुद बनाना चाहता था। इसी जज्बे ने मुझे यहां पहुंचा दिया।

फिर गारमेंट सेक्टर क्यों? कोई और क्षेत्र क्यों नहीं चुना?
वो अक्टूबर 2003 का वक्त था। मैं ग्रेजुएशन कर ही रहा था। लेकिन, मेरा दिल कॉलेज में नहीं लग रहा था। मैं जल्द से जल्द मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता था। उसी दौरान पता चला कि मेरे बचपन के दोस्त अमृत आनंद उर्फ विक्की ने किसी गारमेंट फैक्ट्री में अच्छी खासी नौकरी पकड़ ली। विक्की दो साल पहले ही दिल्ली के किसी फैशन डिजाइनिंग इंस्टीच्यूट में कोर्स करने निकला था। विक्की की कामयाबी की बात सुनकर मुझे नई राह दिखाई देने लगी। लगा कि मुझे भी कुछ करना चाहिए और मैं पहुंच गया दिल्ली। दिल्ली में आईआईएफटी से मैंने गारमेंट मर्चेडाइजर एंड डिजाइनिंग का कोर्स किया। एक साल का कोर्स पूरा करते ही मेरी नौकरी लग गई और फिर यहां तक पहुंच गया।

नौकरी लग गई। फिर क्या हुआ? क्या आप उसी जगह पर हैं, जहां से सफर शुरू किया था?
नहीं। जैसा कि हर क्षेत्र में होता है, शुरुआत बेहद संघर्ष भरा था। लेकिन मैंने कभी मेहनत से भागने वालों में नहीं था। सेलरी क्या मिलती है, इसकी मैंने परवाह नहीं की। मैंने ध्यान सिर्फ इस बात पर दिया कि गारमेंट सेक्टर की सारी बारीकियां सीख जाऊं। इसी धुन की वजह से ही मैंने कुछ ही दिनों में कपड़े की डिजाइनिंग से लेकर इसके डिस्ट्रीब्यूशन तक सारा काम देखने लगा था। बेशक मेरी सेलरी कम थी लेकिन कंपनी का मुझ पर भरोसा था और मैं जल्द इस अपने काम की बदौलत प्रतिद्वंद्वी कंपनियों में भी जाना जाने लगा। फिर जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, अनुभव और संपर्क भी बढ़ता गया।अब आप कह सकते हैं कि मैंने गारमेंट सेक्टर में अपना पांव जमा लिया है।
नौकरी लग गई। पांव जम गया। अब क्या?

अभी तो सिर्फ पांव जमा है। इसे अंगद के पांव की तरह मजबूत बनाना है। इस ट्रेड में मैं अपने लिए अलग मुकाम बनाना चाहता हूं। शोहरत के साथ-साथ पैसा जरूरी होता है। मुझे दोनों चाहिए। मुझे भरोसा है कि मैं इसे जल्द पा लूंगा।
क्या अपने काम से आप संतुष्ट हैं?
कुल मिलाकर आप ऐसा कह सकते हैं, लेकिन संतुष्टि और असंतुष्टि दोनों स्थायी चीज नहीं है। अगर आप कंपनी को कारोबार देते हैं तो संतुष्टि महसूस करते हैं। कभी-कभी बायल को सैंपल दिखाने के लिए रात-रात भर डिजाइन करना पड़ता है। और अगले रोज जब बायर उस डिजाइन के एप्रिएशट कर आर्डर करता है तो संतुष्टि की सीमा नहीं होती। लेकिन, कड़ी मेहनत के बाद भी अगर बायर खुश नहीं होता तो चाहे लाख आपको अपना काम अच्छा लगे, लेकिन आपको संतुष्टि नहीं होती। इस कारोबार में बायर ही हमारा पैमाना है। उसकी संतुष्टि ज्यादा मायने रखती है।
अब जरा अपने बारे में बताइये।
बताने को बहुत कुछ नहीं है। 25 साल का हूं। गाजियाबाद के वसुंधरा में फिलहाल रह रहा हूं। अपने माता-पिता का सबसे बड़ा बेटा हूं। दूसरा भाई आशीष कंप्यूटर हार्डवेयर में जॉब करता है, जबकि सबसे छोटा भाई मनीष रुड़की से इलैक्ट्रिकल एंड इलैक्ट्रानिक्स इंजीनियरिंग कर रहा है। दो कजन्स भी मेरे साथ रहता है। नीरज मॉल मैनेजमेंट कर गाजियाबद में ही एमएनसी में जॉब कर रहा है, जबकि सौरभ सॉफ्टवेयर का कोर्स कर रहा है। पिताजी, पिछले साल ही सरकारी नौकरी से रिटायर हुए हैं।
छतहार गए कितने दिन हो गए? क्या गांव की याद नहीं आती?

तकरीबन दो साल हो गए घर हुए। काम की व्यस्तता इतनी है कि जा नहीं पाता। पिछले महीने ही मैं अपने दोस्त बुद्धन की शादी में गांव जाने का टिकट कटा चुका था लेकिन दफ्तर के काम की वजह से आखिरी वक्त में प्रोग्राम बदलना पड़ा।
गांव की याद तो बहुत आती है, लेकिन मेरा भाई आशीष और दोनों कजन्स मेरे साथ ही रहते हैं। गांव और पड़ोस के भी ढेरों लोग आसपास रहते हैं। ऐसे में मेरे आसपास भी एक मिनी गांव है, जो छतहार की कमी काफी हद तक दूर कर देता है। यही नहीं, घर और गांव से भी लोगों का आना-जाना लगा रहता है।
गांव की कोई ऐसी बातें, जिसे आप मिस करते हों?
गांव की शाम को बेहद मिस करता हूं। शाम में दोस्तों की चौकड़ी और फिर शिवाला में पूजा की घंटी। आज भी शाम को दफ्तर से घर लौटते वक्त अक्सर कानों में वो आवाज गूंजती रहती है। गांव की गप्पें, किस्से, झगड़े, बड़ुआ नदी का बाढ़, कालीपूजा का मेला.. सब आज भी फ्लैश बैक की तरह घूमता रहता है।

क्या आपने छतहार ब्लॉग देखा है? इसके बारे में कुछ कहना चाहेंगे?

हां, मैं नियमित रूप से इसे देखता हूं। अच्छा लगता है यहां आना। हालांकि अभी बहुत सुधार की जरुरत है। अगर में नियमित रूप से गांव की खबरें अपडेट हो तो अच्छा लगेगा। अगर गांव के लोग भी इसमें हिस्सा लें तो अच्छा है। छतहार के जो लोग दूर शहरों में रहते हैं, उनके लिए ये ब्लॉग में आप में जुड़ने का अच्छा माध्यम बन सकता है। अगर आप ऐसा कर सकें तो यकीनन छतहार के लिए ये बड़ा योगदान होगा।
छतहार के लोगों के लिए संदेश?
संदेश देने के लिए तो फिलहाल मैं बहुत छोटा हूं, बस एक मशविरा दे सकता हूं। बी पॉजिटिव। चुनौतियों से डरो नहीं। काम से भागो नहीं। कुछ करने का धुन रहेगा तो कामयाबी जरूर मिलेगी।
शुक्रिया विकास।

Thursday, April 8, 2010

गांव के गीत

धन्य-धन्य हमरो छतहार छै गे बहिनो
धन्य-धन्य हमरो छतहार
यहां विराजे बाबू गोरेलाल मिसर जी
हुनी छलै वैद्यवा अपार गे बहिनो
धन्य-धन्य हमरो छतहार
यहां विराजे बाबू महिपाल पांड़े जी
हुनी छलै ओझवा अपार गे बहिनो
धन्य-धन्य हमरो छतहार
यहां विराजे बाबू प्रताप नारायण सिंह जी
हुनी छलै जमींदार गे बहिनो
धन्य-धन्य हमरो छतहार
यहां विराजे बाबू संत कुमार झा जी
हुनी छलै पंडित अपार गे बहिनो
धन्य-धन्य हमरो छतहार
यहां विराजे बाबू हरिलाल मिसर जी
हुनी छलै तहसीलदार गे बहिनो
धन्य-धन्य हमरो छतहार
धन्य- धन्य हमरो छतहार छै गे बहिनो
धन्य-धन्य हमरो छतहार

गीतकार-स्व.कटकिन राय
सौजन्य- श्री बुटेरी चौधरी