छतहार बदल रहा है। छतहार बदल गया है। लेकिन इस बदलाव का स्वागत कीजिए क्योंकि ये बदलाव सकारात्मक है। ये बदलाव रचनात्मक है।
पिछले दिनों मुखियाजी दिल्ली आए थे। बात चली बिहार की। छतहार पंचायत की। पंचायत में चल रहे थे विकास कार्यों की। मुखियाजी बोले अब छतहार पहले जैसा नहीं रहा। विकास का काम जोरों पर है। सड़कें बन रही हैं। छतहार स्कूल नये कलेवर में आ चुका है। पंचायत के दूसरे गावों भी शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव की रोशनी से नहा रहे हैं। किसी बच्चे को पढ़ने के लिए अब मीलों पैदल चलने की जरुरत नहीं रही। वो जमाना गया जब हम पैंट उतारकर बड़ुआ नदी पार कर शिशु ज्ञान मंदिर जाते थे। अब सब अपने गांव में पढ़ेगा। मां-बाप के नजरों के सामने रहेगा।
चलिये मुखियाजी, आपका कहना तो सही है कि आपने पंचायत के तकरीबन हर गांव को स्कूल दे दिया, लेकिन उन नौजवानों का क्या जिनके घर में वो माहौल नहीं कि सकून से बैठकर हाई स्कूल या कॉलेज का होमवर्क पूरा कर सकें? या फिर प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर सकें? क्या आपने ऐसे नौजवानों के बारे में कुछ सोचा है?
जरूर सोचा है और किया भी है। तपाक से बोले मुखियाजी। अगर देखना है तो आइये शहीद विश्वनाथ सिंह पुस्तकालय। राय टोला के पास डाढ़ के किनारे एक बड़ी बिल्डिंग में चल रहा है ये पुस्तकालय। हालांकि, गांव में धोबिया टोला के पास पहले भी एक पुस्तकालय था, लेकिन पढ़ने के लिए कभी कोई वहां गया हो याद नहीं आता। लेकिन, इस पुस्तकालय में मुखियाजी की पहल पर हर रोज यहां अखबार आता है। नौजवान तो नौजवान, गांव के बड़े-बूढ़े भी रोजाना खबरों की भूख मिटाने यहां आते हैं। यही नहीं, हर महीने पत्र-पत्रिकाएं भी पुस्तकालय के लिए मंगवाई जाती हैं। लेकिन, सिर्फ अखबार और पत्रिका पढ़ने लोग यहां नहीं आते। गांव के किशोर पढ़ाई करने भी यहां आते हैं। कभी दुपहरी में आइये देखिये कैसे हमारे बच्चे ग्रुप स्टडी करते हैं। इस बदलाव पर आप भी हैरान रह जाएंगे।
शहीद विश्वनाथ सिंह पुस्तकालय की बात चली है तो शहीद विश्वनाथ के बारे में भी जरा आपको बता दें। विश्वनाथ सिंह का नाम छतहार के महान देशभक्तों में बड़े गर्व से लिया जाता है। 15 फरवरी 1932 को तारापुर थाना पर झंडा फहराने की कोशिश में वो शहीद हुए थे। उनकी यादों को जिंदा रखने के लिए 2005 में शहीद विश्वनाथ सिंह पुस्तकालय की स्थापना हुई। शहीद विश्वनाथ सिंह पुस्तकालय के लिए तत्कालीन सांसद और विदेश राज्यमंत्री भारत सरकार श्री दिग्विजय सिंह ने ढाई लाख रुपये दिए थे। यही नहीं, शहीद विश्वनाथ की याद में साल 2001 से पांच साल तक शानदार क्रिकेट टूर्नामेंट का भी आयोजन हुआ। अपने वक्त में ये इलाके का सबसे प्रतिष्ठित क्रिकेट टूर्नामेंट माना जाता था।
खैर ये तो हुई शहीद विश्वनाथ के बारे में बातें। लेकिन, भूलियेगा नहीं। कभी कुछ पढ़ने का मन करे तो एक बार शहीद विश्वनाथ सिंह पुस्तकालय जरूर आइयेगा।
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कई सारे ब्लॉग मैंने देखे हैं लेकिन पहली बार किसी गांव का ब्लॉग देखा है। ये अपने देश के बदलते गांवों की बदलती पहचान है। बधाई।
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