यहां पेश है एक गजल और दो लोकगीत जिसे मनोज जी ने ना सिर्फ स्वर दिया है बल्कि संगीत भी दिया है। ये गीत कश्ती के मुसाफिर अलबम से है, जो नए दशक की शुरुआत में बिहार में बेहद लोकप्रिय रहा था। गीतकार हैं ज्योतिंद्र नाथ मिश्र और गायन में मनोजजी का साथ दिया है प्रियंका गहरबार ने।
चांदनी रात में हर फूल मुस्कुराया है
ऐसा लगता है, बहारों ने सर उठाया है
हसीन लम्हों से भरी आंखें, इस तरह अपनी
दर्द सीने से उतर सरजमीं पे आया है
आप हैं चांद है चांदनी रात है
बात करते रहें तो क्या बात है।
आइये दो कदम हम मिलके चलें
पा पा पा मा मा मा गा गा गा रे रे रे
गा गा गा रे रे रे सा पा धि ना सा सा नि सा सा
नि रे रे नि सा सा पा धा नि सा सा पा धा नि सा सा
आइये दो कदम हम मिल कर चलें
फिर भटकते रहें तो क्या बात है।
आप हैं चांद है....
सुलगते हुए एक जंग से हम
गुजरते रहें तो क्या बात है
आप हैं चांद है...
जिंदगी दर्द का दूसरा नाम है
पा पा पा मा मा मा गा गा गा रे रे रे
गा पा गा पा गा रे सा
जिंदगी दर्द का दूसरा नाम है
मुस्कुराते रहें तो क्या बात है
साल २००० में कश्ती के मुसाफिर अलबम की रिकार्डिंग के दौरान पटना स्टूडियो में ली गई तस्वीर। सामने की पंक्ति में बाएं से चौथे हैं मनोज मिश्र। उनकी बायीं तरफ गायिका प्रियंका जबकि उनके ठीक पीछे खड़े हैं गीतकार ज्योतिंद्रनाथ मिश्र।
अंगिका गीत- गोरी के शान
गीतकार- ज्योतिंद्रनाथ मिश्र
गायक और संगीतकार- मनोज मिश्र
पटना दूरदर्शन पर ये गीत 2005 में प्रसारित हो चुका है
(ये गांव के एक पति के दिल का दर्द है, जिसकी पत्नी के पास रूप तो है लेकिन गुण नहीं)
तोरा ऐसन शान गे गोरकी, कत्ते के देखलियै
ऐसन तीर कमान गे गोरी कत्ते के देखलियै
बोली तोर तबल दूध सन, देलकैय जीभ जराय
सउसे मुंह में फोंका होय गेल, तरुवो गेलै छिलाय
मुंह में रखनै पान गे गोरकी कत्तै के देखलियै
ऐसन तीर कमान गे गोरी कत्ते के देखलियै
तोरा ऐसन...
ऐना कंघी आगू रहै छौ, पीछू सुनै छैं बात
डबकते डबकते जरी गेलौ, फेरु भंसा के भात
ऐसन तीर कमान गे गोरकी...
रंग बिरंगा सारी किनैय छैं, फटलै हमरो जुत्ता
बढ़लै ढाड़ी बाल देखी के, पीछू भूंके कुत्ता
मधुर मधुर मुस्कान गे गोरकी कत्तै के देखलियै
तोरा ऐसान शान गोरी के
रात रात भर जागल रहै छी, लागौ तोरा नींद
खटिया चढ़ी के मचकै छें तों, हमरा मिलल जमीन
ऐसन तीर तमान...
सोलह सोमबारी के फल छौ, ऐसन मिललौ दूल्हा
गोतनी के साथ तों टीवी देखैं छैं, हम्में फूकौं चूल्हा
मधु-मधुर मुस्कान गे गोरकी...
1992 में दुमका, एंड के शारदा संगीत महाविद्यालय में कार्यक्रम पेश करते मनोज मिश्र
गीत- डर लागै
गीतकार- ज्योतिंद्र नाथ मिश्र
गायक और संगीतकार- मनोज मिश्र
(नौकरी के लिए शहर जा रहे पति को उसकी बीवी किस तरह रोकती है उसकी बानगी है ये लोकगीत)
डर लागै हो सैंया डर लागे
तोरा सूनी रे मड़ैय़ा में डर लागे
पति कहता है-
जिसके पूरे घर में भरा पूरा परिवार हो उसे डर कैसे
तुम्हारी सासु मां हैं प्यारी ननद है छबीले देवरजी हैं फिर डर कैसा?
पत्नी बोलती है
सासु हमारी बड़ी है पुरानी, दिनभर मांगे हुक्का पानी
बतिया उनकी जहर लागे
तोरा सुनी रे मड़ैया में डर लागे
कुंवारी ननदिया के लंबी-लंबी केसिया
हंसे जैसे हंसुआ के धार जैसन हसिया
दिन दुपहरिया कहर लागे
तोरा सूनी रे मड़ैया में डर लागे
छैल छबीला मोरा बांका देवरवा
हमको जगायके खेले सतघरवा
अंखिया मारे हो हो हो
अंखिया मारे नजर लागे
तोरा सूनी रे मड़ैया में डर लागे
अब ना रहबै हम तोहरी अटरिया
ले लैयो सैंया झोरी गठरिया
दुश्मन सारा हो हो हो
दुश्मन सारा शहर लागे
तोरा सूनी रे मड़ैया में डर लागे
its very nice lyrics, and also very nice to listen, u can feel every sentence while lisning this gazal. very nice.
ReplyDeletewhy he pause his music, we don't know but we really miss some good songs and gazals.
for his diversion from music i would like to say, may be job is his need but music is his passion. he can't far away from music.definately he will back with flying colours as we r awaiting..............
मनोज जी अपनी संगीत यात्रा यूंही जारी रखिए...इसे किसी भी कारण रुकने नहीं दीजिए...अच्छा लगता अगर आप की ये कविताएं, गज़ल, गीत आपसे सुन पाते लेकिन पढ़ा तब भी अच्छा लगा...
ReplyDeleteThanks Vikas and Sangeeta ji,
ReplyDeleteAap logon ki prerna se main fir se apni sangeet sadhna ke liye samay dene ka prayas karunga,Is God Gift ko dawa kar rakhne ka apradh ab main nahi karunga.Kewal aap sabon ka uchit sujhav aur pyaar chahiye.
Main jald hi apna voice audio add karne ka prayash karunga.
Regards
Manoj Mishra
मनोज जी
ReplyDeleteकुछ गानों का एम पी3 हो तो भेजें
हम भी सुनना चाहते हैं।
मनोज जी
ReplyDeleteकुछ गानों का एमपी3 होतो भेजें।
हम भी सुनना चाहते हैं।