आपसे निवेदन
Tuesday, June 29, 2010
छतहार में शोक सभा
दिग्विजय सिंह पंचतत्व में विलीन
इस मौके पर राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद, लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान, सांसद ललन सिंह, राज्य के मंत्री नरेंद्र सिंह, सूरजभान सहित विभिन्न दलों के कई नेता उपस्थित थे।
पांच बार सांसद रहे और पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय की अंतिम यात्रा उनके निवास से निकल नकटी नदी के श्मशान घाट पर तक गई जहां उनके अनुज कुमार त्रिपुरारी सिंह ने उन्हें मुखाग्नि दी। इस मौके पर हजारों ने अपने प्रिय नेता को अश्रुपूर्ण विदाई दी। इस मौके पर छतहार की तरफ से मुखिया श्री मनोज मिश्र और श्री पंकज सिंह शामिल हुए। रविवार की रात से ही दिवंगत नेता के पैतृक निवास पर उनके अंतिम दर्शन के लिए बड़ी तादाद लोगों का आना जारी रहा।
उनके पार्थिव शरीर को रविवार को दिल्ली से पटना लाया गया था जहां से उसे उनके संसदीय क्षेत्र बांका होते हुए गिद्घौर ले जाया गया। पटना रेलवे स्टेशन पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद सहित राज्य के कई मंत्रियों ने उन्हें श्रद्घांजलि अर्पित की।
डिस्क्लेमर - उपरोक्त तस्वीर वेबसाइट से ली गई है। तस्वीर व्यावसायिक उपयोग के लिए नहीं है। फिर भी अगर कॉपीराइट का मामला हो तो सूचित करें। तस्वीर हटा ली जाएगी।
Saturday, June 26, 2010
वो भी क्या दिन थे

Friday, June 25, 2010
मंगलवार को शोकसभा
दिग्विजय बाबू को श्रद्धांजलि

पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र के साथ पटना एयरपोर्ट पर दिग्विजय सिंह। चित्र-साभार
Thursday, June 24, 2010
शोक में डूबा छतहार

मुखियाजी के साथ बैठे तमाम लोग सन्न थे। सदमे में थे। सकते में भी। बांका संसदीय क्षेत्र की मुखर आवाज गुम हो चुकी थी। एक मिलनसार, आत्मीय, जिंदादिल, भलामानुस हमारे बीच से दूसरी दुनिया जा चुका था। हर तरफ खामोशी थी। मातमी सन्नाटा पसरा था। तभी मुखिया मनोज मिश्र की भर्राई आवाज सन्नाटे को चीरती हुई निकली- दिग्विजय बाबू की मौत छतहार के लिए गहरा सदमा है। ये हमारी निजी क्षति है। दिग्विजय बाबू का छतहार से गहरा लगाव था और यहां की जनता में वो बेहद लोकप्रिय थे। सीधे और सरल प्रकृति के दिग्विजय बाबू लोगों की मदद को हमेशा तैयार रहते थे। छतहार की कई योजनाओं में उन्होंने अपने फंड से पैसा था। हालांकि इस बार वो थोड़े समय के लिए सांसद रह पाए, लेकिन छतहार के विकास में जिस तरह से उन्होंने दिलचस्पी दिखाई उतनी अब तक किसी सांसद ने दिखाई। आखिर में मुखियाजी ने कहा कि ये मेरी निजी क्षति है।
छतहार के मुखिया मनोज मिश्र ने दिग्विजय सिंह के निधन को अपनी निजी क्षति बताते हुए कहा कि कहा कि दिग्विजय जी का निधन देश और खासकर अपने क्षेत्र के लिए अपूरणीय क्षति है और इसे भरा नहीं जा सकता। दिग्विजय जी क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के लिए हमेशा आगे बढ़ कर प्रयास करते थे।
मुखियाजी चुप हुए तो फिर शुरू हो गया श्रद्धांजलि का सिलसिला। निकल पड़ा यादों का कारवां। पिछले लोकभा चुनाव में दिग्विजय बाबू के लिए छतहार में चुनाव प्रचार की कमान संभालने वाले ब्रजेश कुमार मिश्र उर्फ सिंटू ने कहा-उनके जैसा शख्स मैंने अब तक नहीं देखा। बड़ा आदमी होकर भी वो एकदम जमीन से जुड़े हुए थे। पंकज सिंह बोले- दिग्विजय बाबू से मेरा निजी रिश्ता था। जब भी कोई काम पड़ा उन्होंने कभी ना नहीं किया। वो पढ़े लिखे और निहायत ही सज्जन किस्म के इंसान थे। बांका ही नहीं बिहार ने एक होनहार नेता खो दिया। अगर वो जिंदगी की लंबी पारी खेल पाते तो बांका का कायाकल्प हो जाता।
कुछ महीना पहले ही दिग्विजय बाबू से उनके आवास पर मिलने वाले प्रोफेसर उदय मोहन सिंह बेहद मर्माहत थे। वो याद कर रहे थे वो एक-एक पल कि कैसे दिल्ली में दिग्विजय बाबू से मुलाकात हुई और पहली ही मुलाकात में वो कितनी आत्मीयता से मिले। उदय बाबू ने कहा कि एक ही मुलाकात में उनसे दिल का रिश्ता हो गया था। निर्मल कुमार मिश्र उर्फ नीरू बाबू ने दिग्विजय सिंह को बिहार के नेताओं की जमात का सबसे होनहार चेहरा बताया। उन्होंने कहा कि बिहार खासकर बांका को दिग्विजय बाबू की अभी लंबे वक्त तक जरुरत थी, लेकिन ऊपर वाले के इंसाफ को कौन टाल सकता है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
बैंक में मैनेजर रहे सुबोध कुमार सिंह भी दिग्विजय बाबू की मौत से सदमे में थे। उन्होंने कहा कि भगवान ने हमसे एक सरल, सुबोध मुस्कुराहट छीन ली। उनकी निश्छल मुस्कान और मिलनसार व्यक्तित्व हमेशा यादों में रहेगा। भगवान उनकी पत्नी और बच्चों को दुख सहने का साहस दे।
दिग्विजय सिंह के चुनाव प्रचार से जुड़े अनंत राय और उदय तिवारी ने दिग्विजय बाबू को एक ओजस्वी वक्ता के रूप में याद किया। अनंत राय बोले- वो जनता की आवाज थे। बिहार के वो उन चंद गिने-चुने नेताओं में थे जिनकी आवाज हमेशा दिल्ली में गूंजती थी। टीवी चैनलों पर उन्हें देखकर हमारा सिर गर्व से ऊंचा हो जाता था। लेकिन, आज हमारे लिए दुख की घड़ी है।
उदय तिवारी ने कहा- बांका पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा है। दिग्विजय बाबू नहीं रहे. यकीन नहीं होता। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे और उनके चाहने वालों को दुख झेलने की शक्ति।
दिग्विजय सिंह नहीं रहे

राइफल एसोसिएशन के अध्यक्ष और कॉमनवेल्थ गेम्स की आर्गेनाइजेसन के सदस्य दिग्विजय सिंह लंदन कॉमनवेल्थ गेम्स एक्ज्यूक्यूटिव कमेटी की बैठक में हिस्सा लेने गए थे और वहीं उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। दिग्विजय सिंह के परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटियां हैं।
दिग्विजय सिंह का जन्म 14 नवंबर 1955 को जमुई के गिद्धौर में हुआ था। पटना विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के बाद उन्होंने दिल्ली का रुख किया। यहां जेएनयू से उन्होंने एम.फिल किया। बाद में वह आगे की पढ़ाई के लिए टोकियो भी गए। दिग्विजय सिंह पांच बार संसद सदस्य रहे। तीन बार लोकसभा (1998, 99, 2009) और दो बार राज्य सभा (1990, 2004)। 1990 में चंद्रशेखर सरकार में वह पहली बार मंत्री बने। फिर 1999 से 2004 के बीच एनडीए की सरकार में पहले रेल राज्य मंत्री और फिर बाद में विदेश राज्य मंत्री बने। पिछले लोकसभा चुनाव में जेडीयू से टिकट नहीं मिलने पर दिग्विजय सिंह ने बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा था और अच्छे अंतर से चुनाव जीत कर आए थे। दिग्विजय सिंह एक कुशल वक्ता भी थे। टीवी पर डीबेट में विभिन्न मुद्दों पर वह अपनी राय बेबाकी से रखते थे।
Sunday, June 20, 2010
छतहार के फनकार- मनोज मिश्र
यहां पेश है एक गजल और दो लोकगीत जिसे मनोज जी ने ना सिर्फ स्वर दिया है बल्कि संगीत भी दिया है। ये गीत कश्ती के मुसाफिर अलबम से है, जो नए दशक की शुरुआत में बिहार में बेहद लोकप्रिय रहा था। गीतकार हैं ज्योतिंद्र नाथ मिश्र और गायन में मनोजजी का साथ दिया है प्रियंका गहरबार ने।
चांदनी रात में हर फूल मुस्कुराया है
ऐसा लगता है, बहारों ने सर उठाया है
हसीन लम्हों से भरी आंखें, इस तरह अपनी
दर्द सीने से उतर सरजमीं पे आया है
आप हैं चांद है चांदनी रात है
बात करते रहें तो क्या बात है।
आइये दो कदम हम मिलके चलें
पा पा पा मा मा मा गा गा गा रे रे रे
गा गा गा रे रे रे सा पा धि ना सा सा नि सा सा
नि रे रे नि सा सा पा धा नि सा सा पा धा नि सा सा
आइये दो कदम हम मिल कर चलें
फिर भटकते रहें तो क्या बात है।
आप हैं चांद है....
सुलगते हुए एक जंग से हम
गुजरते रहें तो क्या बात है
आप हैं चांद है...
जिंदगी दर्द का दूसरा नाम है
पा पा पा मा मा मा गा गा गा रे रे रे
गा पा गा पा गा रे सा
जिंदगी दर्द का दूसरा नाम है
मुस्कुराते रहें तो क्या बात है

साल २००० में कश्ती के मुसाफिर अलबम की रिकार्डिंग के दौरान पटना स्टूडियो में ली गई तस्वीर। सामने की पंक्ति में बाएं से चौथे हैं मनोज मिश्र। उनकी बायीं तरफ गायिका प्रियंका जबकि उनके ठीक पीछे खड़े हैं गीतकार ज्योतिंद्रनाथ मिश्र।
अंगिका गीत- गोरी के शान
गीतकार- ज्योतिंद्रनाथ मिश्र
गायक और संगीतकार- मनोज मिश्र
पटना दूरदर्शन पर ये गीत 2005 में प्रसारित हो चुका है
(ये गांव के एक पति के दिल का दर्द है, जिसकी पत्नी के पास रूप तो है लेकिन गुण नहीं)
तोरा ऐसन शान गे गोरकी, कत्ते के देखलियै
ऐसन तीर कमान गे गोरी कत्ते के देखलियै
बोली तोर तबल दूध सन, देलकैय जीभ जराय
सउसे मुंह में फोंका होय गेल, तरुवो गेलै छिलाय
मुंह में रखनै पान गे गोरकी कत्तै के देखलियै
ऐसन तीर कमान गे गोरी कत्ते के देखलियै
तोरा ऐसन...
ऐना कंघी आगू रहै छौ, पीछू सुनै छैं बात
डबकते डबकते जरी गेलौ, फेरु भंसा के भात
ऐसन तीर कमान गे गोरकी...
रंग बिरंगा सारी किनैय छैं, फटलै हमरो जुत्ता
बढ़लै ढाड़ी बाल देखी के, पीछू भूंके कुत्ता
मधुर मधुर मुस्कान गे गोरकी कत्तै के देखलियै
तोरा ऐसान शान गोरी के
रात रात भर जागल रहै छी, लागौ तोरा नींद
खटिया चढ़ी के मचकै छें तों, हमरा मिलल जमीन
ऐसन तीर तमान...
सोलह सोमबारी के फल छौ, ऐसन मिललौ दूल्हा
गोतनी के साथ तों टीवी देखैं छैं, हम्में फूकौं चूल्हा
मधु-मधुर मुस्कान गे गोरकी...
1992 में दुमका, एंड के शारदा संगीत महाविद्यालय में कार्यक्रम पेश करते मनोज मिश्र
गीत- डर लागै
गीतकार- ज्योतिंद्र नाथ मिश्र
गायक और संगीतकार- मनोज मिश्र
(नौकरी के लिए शहर जा रहे पति को उसकी बीवी किस तरह रोकती है उसकी बानगी है ये लोकगीत)
डर लागै हो सैंया डर लागे
तोरा सूनी रे मड़ैय़ा में डर लागे
पति कहता है-
जिसके पूरे घर में भरा पूरा परिवार हो उसे डर कैसे
तुम्हारी सासु मां हैं प्यारी ननद है छबीले देवरजी हैं फिर डर कैसा?
पत्नी बोलती है
सासु हमारी बड़ी है पुरानी, दिनभर मांगे हुक्का पानी
बतिया उनकी जहर लागे
तोरा सुनी रे मड़ैया में डर लागे
कुंवारी ननदिया के लंबी-लंबी केसिया
हंसे जैसे हंसुआ के धार जैसन हसिया
दिन दुपहरिया कहर लागे
तोरा सूनी रे मड़ैया में डर लागे
छैल छबीला मोरा बांका देवरवा
हमको जगायके खेले सतघरवा
अंखिया मारे हो हो हो
अंखिया मारे नजर लागे
तोरा सूनी रे मड़ैया में डर लागे
अब ना रहबै हम तोहरी अटरिया
ले लैयो सैंया झोरी गठरिया
दुश्मन सारा हो हो हो
दुश्मन सारा शहर लागे
तोरा सूनी रे मड़ैया में डर लागे
Saturday, June 12, 2010
मदमस्त के बहे बयार महिनवा फागुन के
बाटे रे बटोहिया तोहिं मोरो भैया
लेले जाहो हमरो संदेश, महिनवा फागुन के
मदमस्त के बहे बयार महिनवा फागुन के
सबके बलमुआं घर घर घूमे
हमरो बलमू परदेस, हे हो
हमरो बलमू परदेस महिनवा फागुन के
मदमस्त के बहे बयार महिनवा फागुन के
तोहरो बलमुआं के चिन्हियो ना जानियो
कैसे के कहब संदेश हे हो
कैसे के कहब संदेश महिनवा फागुन के
मदमस्त के बहे बयार महिनवा फागुन के
सबके बलमुआं के लंबी लंबी केशिया
हमरे के पगिया निशान, महिनवा फागुन के
मदमस्त के बहे बयार महिनवा फागुन के
- बेशक ये मौसम फागुन का नहीं है, लेकिन अगर आप अपनों से दूर रहते हैं तो जेठ में भी ये फागुन जैसा असर करता है। सबके बलमुआ घर-घर घूमे, हमरो बलमुआ परदेस.... यहां बलमुआ की जगह किसी अपने को रख कर देखिये, जिसे अ्पने प्यारे गांव छतहार से दूर बैठे आप मिस कर रहों तो ये गीत आपके मन की संवेदना के तार को झंकृत कर देगी।

Sunday, June 6, 2010
छतहार के आस्था केंद्र


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