आपसे निवेदन

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Saturday, April 10, 2010

धरतीपुत्र

जिस तरह गांव की रफ्तार सुस्त होती है, वैसे ही छतहार की रफ्तार भी फिलहाल सुस्त है। चाल भले ही सुस्त हो, लेकिन रफ्तार कभी रुकेगी नहीं, इसका हम यकीन दिलाते हैं। आज हम इस ब्लॉग एक नया स्तंभ शुरू करने जा रहे हैं, जिसमें आप रूबरू होंगे छतहार के उन लोगों से जो अपनी जमीन खुद तैयार करने के लिए छतहार से दूर हैं। उनकी सांसों में बड़ुवा के पानी की खुशबू है, लेकिन जिंदगी की मजबूरी ने उन्हें अपनी माटी से दूर कर दिया है। ऐसे ही एक नौजवान से आज हम आपको मिलवाते हैं। मिलिए विकास मिश्र से जो नोएडा के एक एक्सपोर्ट हाउस में इस वक्त बतौर गारमेंट मर्चेडाइजर काम कर रहे हैं।
विकास, पहले तो शुक्रिया अपना कीमती वक्त देने के लिए। पहले ये बताइये गांव से सीधा उठकर एक गैर परंपरागत सेक्टर में कैसे आना हुआ? क्योंकि गांव में जहां बहुत सारी सुविधाएं नहीं होंती वहां तो लोगों का एकमात्र लक्ष्य सरकारी नौकरी होता है?

आपने बिल्कुल सही फरमाया। लेकिन, शुरुआत से ही मैं लीक से हटकर कुछ करना चाहता था। दरअसल, सरकारी नौकरी में मेरी कोई रुचि नहीं थी। मैंने अपने गांव के कई लोगों को देखा जो सरकारी नौकरी में थे लेकिन वो दफ्तर कब जाते थे, कब आते थे पता नहीं चलता था। उनकी रफ्तार थमी हुई थी। उनके जीवन में कोई चुनौती नहीं थी। मैं नई चुनौतियों का सामना करना चाहता था। अपनी लीक खुद बनाना चाहता था। इसी जज्बे ने मुझे यहां पहुंचा दिया।

फिर गारमेंट सेक्टर क्यों? कोई और क्षेत्र क्यों नहीं चुना?
वो अक्टूबर 2003 का वक्त था। मैं ग्रेजुएशन कर ही रहा था। लेकिन, मेरा दिल कॉलेज में नहीं लग रहा था। मैं जल्द से जल्द मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता था। उसी दौरान पता चला कि मेरे बचपन के दोस्त अमृत आनंद उर्फ विक्की ने किसी गारमेंट फैक्ट्री में अच्छी खासी नौकरी पकड़ ली। विक्की दो साल पहले ही दिल्ली के किसी फैशन डिजाइनिंग इंस्टीच्यूट में कोर्स करने निकला था। विक्की की कामयाबी की बात सुनकर मुझे नई राह दिखाई देने लगी। लगा कि मुझे भी कुछ करना चाहिए और मैं पहुंच गया दिल्ली। दिल्ली में आईआईएफटी से मैंने गारमेंट मर्चेडाइजर एंड डिजाइनिंग का कोर्स किया। एक साल का कोर्स पूरा करते ही मेरी नौकरी लग गई और फिर यहां तक पहुंच गया।

नौकरी लग गई। फिर क्या हुआ? क्या आप उसी जगह पर हैं, जहां से सफर शुरू किया था?
नहीं। जैसा कि हर क्षेत्र में होता है, शुरुआत बेहद संघर्ष भरा था। लेकिन मैंने कभी मेहनत से भागने वालों में नहीं था। सेलरी क्या मिलती है, इसकी मैंने परवाह नहीं की। मैंने ध्यान सिर्फ इस बात पर दिया कि गारमेंट सेक्टर की सारी बारीकियां सीख जाऊं। इसी धुन की वजह से ही मैंने कुछ ही दिनों में कपड़े की डिजाइनिंग से लेकर इसके डिस्ट्रीब्यूशन तक सारा काम देखने लगा था। बेशक मेरी सेलरी कम थी लेकिन कंपनी का मुझ पर भरोसा था और मैं जल्द इस अपने काम की बदौलत प्रतिद्वंद्वी कंपनियों में भी जाना जाने लगा। फिर जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, अनुभव और संपर्क भी बढ़ता गया।अब आप कह सकते हैं कि मैंने गारमेंट सेक्टर में अपना पांव जमा लिया है।
नौकरी लग गई। पांव जम गया। अब क्या?

अभी तो सिर्फ पांव जमा है। इसे अंगद के पांव की तरह मजबूत बनाना है। इस ट्रेड में मैं अपने लिए अलग मुकाम बनाना चाहता हूं। शोहरत के साथ-साथ पैसा जरूरी होता है। मुझे दोनों चाहिए। मुझे भरोसा है कि मैं इसे जल्द पा लूंगा।
क्या अपने काम से आप संतुष्ट हैं?
कुल मिलाकर आप ऐसा कह सकते हैं, लेकिन संतुष्टि और असंतुष्टि दोनों स्थायी चीज नहीं है। अगर आप कंपनी को कारोबार देते हैं तो संतुष्टि महसूस करते हैं। कभी-कभी बायल को सैंपल दिखाने के लिए रात-रात भर डिजाइन करना पड़ता है। और अगले रोज जब बायर उस डिजाइन के एप्रिएशट कर आर्डर करता है तो संतुष्टि की सीमा नहीं होती। लेकिन, कड़ी मेहनत के बाद भी अगर बायर खुश नहीं होता तो चाहे लाख आपको अपना काम अच्छा लगे, लेकिन आपको संतुष्टि नहीं होती। इस कारोबार में बायर ही हमारा पैमाना है। उसकी संतुष्टि ज्यादा मायने रखती है।
अब जरा अपने बारे में बताइये।
बताने को बहुत कुछ नहीं है। 25 साल का हूं। गाजियाबाद के वसुंधरा में फिलहाल रह रहा हूं। अपने माता-पिता का सबसे बड़ा बेटा हूं। दूसरा भाई आशीष कंप्यूटर हार्डवेयर में जॉब करता है, जबकि सबसे छोटा भाई मनीष रुड़की से इलैक्ट्रिकल एंड इलैक्ट्रानिक्स इंजीनियरिंग कर रहा है। दो कजन्स भी मेरे साथ रहता है। नीरज मॉल मैनेजमेंट कर गाजियाबद में ही एमएनसी में जॉब कर रहा है, जबकि सौरभ सॉफ्टवेयर का कोर्स कर रहा है। पिताजी, पिछले साल ही सरकारी नौकरी से रिटायर हुए हैं।
छतहार गए कितने दिन हो गए? क्या गांव की याद नहीं आती?

तकरीबन दो साल हो गए घर हुए। काम की व्यस्तता इतनी है कि जा नहीं पाता। पिछले महीने ही मैं अपने दोस्त बुद्धन की शादी में गांव जाने का टिकट कटा चुका था लेकिन दफ्तर के काम की वजह से आखिरी वक्त में प्रोग्राम बदलना पड़ा।
गांव की याद तो बहुत आती है, लेकिन मेरा भाई आशीष और दोनों कजन्स मेरे साथ ही रहते हैं। गांव और पड़ोस के भी ढेरों लोग आसपास रहते हैं। ऐसे में मेरे आसपास भी एक मिनी गांव है, जो छतहार की कमी काफी हद तक दूर कर देता है। यही नहीं, घर और गांव से भी लोगों का आना-जाना लगा रहता है।
गांव की कोई ऐसी बातें, जिसे आप मिस करते हों?
गांव की शाम को बेहद मिस करता हूं। शाम में दोस्तों की चौकड़ी और फिर शिवाला में पूजा की घंटी। आज भी शाम को दफ्तर से घर लौटते वक्त अक्सर कानों में वो आवाज गूंजती रहती है। गांव की गप्पें, किस्से, झगड़े, बड़ुआ नदी का बाढ़, कालीपूजा का मेला.. सब आज भी फ्लैश बैक की तरह घूमता रहता है।

क्या आपने छतहार ब्लॉग देखा है? इसके बारे में कुछ कहना चाहेंगे?

हां, मैं नियमित रूप से इसे देखता हूं। अच्छा लगता है यहां आना। हालांकि अभी बहुत सुधार की जरुरत है। अगर में नियमित रूप से गांव की खबरें अपडेट हो तो अच्छा लगेगा। अगर गांव के लोग भी इसमें हिस्सा लें तो अच्छा है। छतहार के जो लोग दूर शहरों में रहते हैं, उनके लिए ये ब्लॉग में आप में जुड़ने का अच्छा माध्यम बन सकता है। अगर आप ऐसा कर सकें तो यकीनन छतहार के लिए ये बड़ा योगदान होगा।
छतहार के लोगों के लिए संदेश?
संदेश देने के लिए तो फिलहाल मैं बहुत छोटा हूं, बस एक मशविरा दे सकता हूं। बी पॉजिटिव। चुनौतियों से डरो नहीं। काम से भागो नहीं। कुछ करने का धुन रहेगा तो कामयाबी जरूर मिलेगी।
शुक्रिया विकास।

5 comments:

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  2. अच्छा प्रयास है,बधाई।खुशी होती है विकास जैसे लोग को देखकर जो छोटे से गांव से आते हैं और गैर परंपरागत क्षेत्र में कैरियर बना कर गांव के लोगों को नई राह दिखा रहे हैं।विकास इसी तरह विकास करते रहें।यही मेरी कामना है।

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  3. My dear bro, you really doing a great job, i am felling proud of you.., wishing you all the great_great success.

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  4. Dear friend(Vikas)
    you are really Intelligent.
    main apko salute karta hu.
    Thanx

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  5. Vikash G, Please give me your email ID.

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