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Sunday, September 12, 2010

सूखे से जूझता छतहार

छतहार सूखे से जूझ रहा है। सितंबर का दूसरा हफ्ता बीत रहा है, लेकिन छतहार में बारिश नहीं हुई है। लोग आसमान निहार रहे हैं। इंद्र देवता से प्रार्थना कर रहे हैं, लेकिन मेघराज का दिल नहीं पसीज रहा। रोपनी का समय बीत चुका है। मुश्किल से एकाध लोग पम्पिंग सेट के जरिये रोपनी कर पाए, लेकिन अब वो भी सूखे की भेंट चढ़ने लगा है। छतहार, टीना, मालडा, तिलधिया पंचायत के तमाम इलाकों में खेत इस बार सूने पड़ा है। मेड़ों पर ना रोपणी के गीत सुनाई दे रहे हैं ना किसानों के चेहरे पर खुशी नजर आ रही है। ज्ञात हो कि इलाके के ज्यादातर लोग खेती पर ही निर्भर हैं।
मुखिया श्री मनोज कमार मिश्र के चेहरे पर कुदरत के इस आफत से उपजी चिंता साफ देखी जा सकती है। वो कहते हैं- सरकार ने पूरे बिहार को सूखाग्रस्त तो घोषित कर दिया है, लेकिन इसका कोई फायदा किसानों को नहीं मिल रहा। रही सही कसर चुनाव आचार संहिता लागू होने के साथ हो गई है।
आपको बता दें कि इलाका सूखाग्रस्त होने का मतलब है कि बैंक किसानों को कर्ज वसूली के लिए परेशान नहीं करेंगे। सरकार किसानों को वैकल्पिक बीज सस्ते में मुहैया कराएगी। खेती के लिए उन्हें बिजली की भी पर्याप्त सुविधा दी जाएगी। लेकिन, सवाल उठता है कि अकाल की वजह से जो खेत बर्बाद हो गए, उसका क्या होगा? उसकी कैसे भरपाई होगी? अगर उपज नहीं होगी तो किसान खाएगा क्या? क्या सरकार के पास इसका कोई जवाब है?
मुखियाजी के मुताबिक इलाके के सारे नहर लगभग सूखे पड़े हैं। कुछ किसानों ने बोरिंग के जरिये खेत रोपने की कोशिश भी की, लेकिन संसाधनों की कमी आड़े आ रही है। लोग चिंता में घुले जा रहे हैं। वो टीवी पर दिल्ली और हरियाणा की बारिश देखकर ऊपर वाले के अन्याय पर आंसू बहा रहे हैं।

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